अमरीका के साथ परमाणु समझौते पर समर्थन वापसी की वाम दलों की धमकी के बीच आज यूएनपीए की अहम बैठक हो रही है जिसमें नए राजनीतिक समीकरण के संकेत मिल सकते हैं।
भारतीय राजनीति के तीसरे कोण यानी यूएनपीए के प्रमुख घटक दल समाजवादी पार्टी (सपा) और संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (यूपीए) के बीच जिस तरह बातचीत का सिलसिला शुरु हुआ है, उससे संभावना जताई जा रही है कि वाम दलों के समर्थन वापस लेने की स्थिति में सपा सरकार बचाने के लिए आगे आ सकती है।
सपा ने माना, बात चल रही है
आख़िरी कड़ी में बुधवार को यूपीए सरकार की ओर से राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार एमके नारायणन ने सपा नेताओं को परमाणु समझौते की बारीकियाँ समझाई।
बैठक के बाद सपा महासचिव अमर सिंह ने हाइड एक्ट, 123 समझौता और ईरान के साथ संबंधों को लेकर कुछ सवाल उठाए।
सपा के संशय को दूर करने की कोशिश
इसके थोड़ी देर बाद ही प्रधानमंत्री कार्यालय ने विस्तृत बयान जारी कर सपा के संशय को दूर करने की कोशिश की।
पत्ते खुलेंगे
सपा महासचिव अमर सिंह ने यूपीए के साथ रिश्तों में गर्माहट के संकेत देते हुए कहा, "हमारे लिए सबसे बड़ी चीज ये है कि सांप्रदायिक ताकतों को सत्ता से दूर रखें।"
हालाँकि उन्होंने पत्ते नहीं खोले और कहा कि यूएनपीए की बैठक के बाद ही इस मुद्दे पर कोई औपचारिक घोषणा की जा सकती है।
सपा और यूपीए के बीच कई दौर की बातचीत हो चुकी है
लेकिन इसमे काम करने वाले संवाददाता श्याम सुंदर का कहना है कि "बंद कमरों में जो बातें हुई हैं वो प्रेस कॉन्फ्रेंस में कभी नहीं बताई जातीं लेकिन ऐसा लग रहा है कि काँग्रेस और समाजवादी पार्टी के बीच सहमति बन गई है कि अगर वामपंथी अविश्वास प्रस्ताव लाते हैं तो वे सरकार को बचा लेंगे"।
उधर वाम मोर्चे के दूसरे प्रमुख घटक दल भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीआई) के नेता एबी बर्धन ने पत्रकारों से कहा, "सरकार की मंशा तो साफ़ है। प्रधानमंत्री जी-8 की बैठक में जा रहे हैं। अब समर्थन वापस कब लिया जाए ये फ़ैसला शुक्रवार को हम वाम मोर्चे की बैठक में लेंगे।"
स्वतंत्र होगी सामरिक नीति
यूपीए सरकार अमरीका के साथ प्रस्तावित परमाणु समझौते को अपनी मुख्य उपलब्धियों में गिनाती रही रही है। गठबंधन सरकार की अगुआ कांग्रेस पार्टी स्पष्ट कर चुकी है कि ये समझौता देशहित में है क्योंकि इससे उर्जा संकट दूर करने में मदद मिलेगी।
प्रधानमंत्री कार्यालय ने सपा की ओर से उठाए गए सवालों का जवाब देते हुए कहा कि समझौते का भारत की विदेश नीति पर कोई असर नहीं पड़ेगा।
ये भी आश्वासन दिया गया है कि न तो इससे भारत-ईरान संबंधों पर असर होगा और न भारत की सामरिक नीति प्रभावित होगी।
प्रधानमंत्री कार्यालय ने दोहराया है कि 123 समझौता सर्वोपरि होगा न कि हाईड एक्ट और भारत की परमाणु परीक्षण की स्वतंत्रता पर भी कोई आँच नहीं आएगी।
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Thursday, July 3, 2008
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