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Thursday, March 27, 2008

'चीन निर्वासित तिब्बती सरकार से बातचीत करे'

अमरीकी राष्ट्रपति जॉर्ज बुश ने चीन से अनुरोध किया है कि वो तिब्बत मसले पर निर्वासित तिब्बती सरकार के प्रतिनिधि, दलाई लामा से बातचीत का सिलसिला शुरू करे।

अमरीकी राष्ट्रपति ने बुधवार को चीन के राष्ट्रपति हू जिंताओ से इस संबंध में टेलीफ़ोन के ज़रिए बातचीत की।

बातचीत में अमरीकी राष्ट्रपति ने चीनी राष्ट्रपति से यह भी अनुरोध किया कि तिब्बत में पत्रकारों और राजनायिकों को आने-जाने से न रोका जाए।

इससे पहले बुधवार को ही चीनी प्रशासन की देखरेख और नियंत्रण में विदेशी पत्रकारों का एक प्रतिनिधिमंडल तिब्बत पहुँचा है।

पिछले दिनों तिब्बत में शुरू हुए चीन विरोधी प्रदर्शनों और उसके बाद हुई हिंसा के बाद विदेशी पर्यटकों और ख़ासतौर पर पत्रकारों के आने पर लोग गए थे।
प्रेस के एक पत्रकार ने बताया है कि तिब्बत की राजधानी ल्हासा की स्थिति छावनी जैसी बनी हुई है और चप्पे-चप्पे पर पुलिस की तैनाती है।

एपी के पत्रकार ने बताया कि सरकारी भवनों की सुरक्षा के लिए अभी भी बड़ी तादाद में सुरक्षाकर्मी तैनात कर रखे गए हैं।

चीन का विरोध

इस बीच दुनिया के कुछ अन्य हिस्सों में तिब्बत मूल के लोगों का चीन विरोध जारी है।


तिब्बत
ल्हासा की स्थिति अभी भी छावनी जैसी बनी हुई है।

बुधवार को भारत प्रशासित कश्मीर की राजधानी में भी कुछ तिब्बती मूल के लोगों ने एक शांतिपूर्ण मार्च निकालकर अपना विरोध दर्ज किया था।

हालांकि इस प्रदर्शन में तिब्बत मूल के मुस्लिम लोगों ने हिस्सा नहीं लिया।

ग़ौरतलब है कि भारत में शरण लेकर रह रही तिब्बत की निर्वासित सरकार समय समय पर चीन से तिब्बत को स्वायत्त करने और अपने प्रभाव से मुक्त करने की मांग करती रही है।

इस वर्ष चीन में ओलंपिक खेलों का आयोजन होना है और ऐसे मौके पर स्वायत्त तिब्बत की मांग करने वाले लोग इस मुद्दे को दुनिया के सामने लाने का मौका नहीं खोना चाहते।

तिब्बत की राजधानी ल्हासा में पिछले दिनों इन्हीं मुद्दों पर कुछ उग्र प्रदर्शन हुए जिसके बाद प्रदर्शनकारियों पर बल प्रयोग भी हुआ।

निर्वासित तिब्बती सरकार के मुताबिक यहाँ प्रदर्शनों के दौरान भड़की हिंसा में कम से कम 80 लोगों की मौत हो गई थी।

Saturday, March 15, 2008

प्रदर्शनों के लिए दलाई लामा को दोष

तिब्बत की राजधानी ल्हासा में पिछले बीस सालों में सबसे हिंसक चीन विरोधी दंगे और हिंसक प्रदर्शन हुए हैं।

प्रदर्शनकारियों ने पुराने शहर में इमारतों में आग लगा दी है, चीनी मूल के व्यापारियों की दुकानें लूट ली गई हैं और उनकी दुकानों को नष्ट कर दिया गया है।

ल्हासा से मिल रही तस्वीरों में सड़कों पर उल्टी पड़ी कारें दिख रही हैं, यहाँ-वहाँ आग लगने के बाद उठता काला धुँआ दिख रहा है और सड़कों पर चीनी फ़ौजें और बख़्तरबंद गाड़ियाँ दिखाई दे रही हैं।

इन हिंसक प्रदर्शनों में कई लोगों के मारे जाने की ख़बरें हैं।

चीन सरकार ने इन उग्र प्रदर्शनों के लिए तिब्बत की निर्वासित सरकार के प्रमुख और धार्मिक नेता दलाई लामा को दोषी ठहराया है।

लेकिन दलाई लामा के प्रवक्ता ने दिल्ली में इन आरोपों का खंडन किया है।

इस बीच ख़बरें मिल रही हैं कि तिब्बत के घटनाक्रम से चीन के लोग नावाकिफ़ हैं क्योंकि सरकार ने इन ख़बरों को सेंसर कर दिया है।

पिछले सोमवार से तिब्बती लोगों का प्रदर्शन ऐसे समय में शुरु हुआ है जब चीन सरकार ओलंपिक की तैयारियों में लगी हुई है।

इस बीच अमरीका और यूरोपीय संघ ने घटनाक्रम पर चिंता व्यक्त करते हुए कहा है कि चीन को तिब्बत के निर्वासित नेता दलाई लामा से बात करनी चाहिए।

हिंसक प्रदर्शन

इस बीच तिब्बति प्रदर्शनकारी विरोध प्रदर्शनों को आगे बढ़ाने की तैयारियाँ कर रहे हैं।


हिंसक प्रदर्शन
ल्हासा में हो रहे प्रदर्शनों को 20 सालों में सबसे बड़े प्रदर्शन माने जा रहे हैं

लेकिन चीनी प्रशासन ने कहा है कि 'अलगाव की षडयंत्र' से सख़्ती से निपटा जाएगा।

चीन प्रशासन ने इन ख़बरों का खंडन किया है कि वहाँ प्रदर्शनकारियों पर सुरक्षाबलों ने गोलियाँ चलाई हैं।

उल्लेखनीय है कि शुक्रवार को ल्हासा में प्रदर्शनकारियों और सुरक्षाबलों के बीच हुए संघर्ष में कई लोगों की मौत हुई है और अनेक घायल हुए हैं।

अमरीकी रेडियो फ्री एशिया को प्रत्यक्षदर्शियों ने बताया कि उन्होंने ल्हासा की सड़कों पर दो लोगों के शव पड़े देखे हैं।

उधर भारत की राजधानी दिल्ली में पुलिस ने ऐसे लगभग 50 तिब्बती प्रदर्शनकारियों को गिरफ़्तार कर लिया जिन्होंने चीनी दूतावास में घुसने की कोशिश की।

अशांत स्थिति

मानवाधिकार संगठनों और प्रत्यक्षदर्शियों का कहना है कि ल्हासा में बौद्ध भिक्षुओं के इस सप्ताह शुरू हुए विरोध के बाद सुरक्षा बलों ने शुक्रवार को तीन बौद्ध मठों को घेर लिया।

चश्मदीदों का कहना था कि गुरुवार को ड्रेपुंग और सेरा मठों में पुलिस पहुँच गई। अमरीका से काम करने वाले एक मानवाधिकार संगठन का कहना है कि गंडेन में एक तीसरे मठ को भी घेरा गया।

चीनी शासन के विरोध में बौद्ध भिक्षुओं के दो दिनों तक चले विरोध के बाद यह क़दम उठाया गया।

गुरुवार को चीन ने बौद्ध भिक्षुओं के प्रदर्शन की बातें तो मानी थीं लेकिन यह भी कहा था कि हालात स्थिर हैं।

तिब्बत से किसी भी ख़बर की पुष्टि कर पाना मुश्किल है क्योंकि वहाँ मीडिया और आने-जाने वालों पर कड़ा सरकारी नियंत्रण है।

ख़बरें हैं कि प्रदर्शन की ख़बरों को चीन सरकार ने देशी मीडिया पर सेंसर कर दिया है। सरकारी टेलीविज़न सीसीटीवी पर इन प्रदर्शनों की कोई ख़बर नहीं दिखाई गई।

इस बीच विदेशी चैनलों पर नज़र रखी जा रही है।

जब भी तिब्बत का ज़िक्र होता है तो चीन सरकार का रवैया आमतौर पर ऐसा ही होता है।

लामा पर दोष

चीन ने ल्हासा की घटनाओं के लिए दलाई लामा को ज़िम्मेदार ठहराया है।


दलाई लामा
दलाई लामा ने प्रदर्शनों को तिब्ब्तियों के असंतोष का प्रतीक बताया है

चीन के सरकारी मीडिया ने कहा है कि ये प्रदर्शन 'पूर्वनियोजित' थे और इसके पीछे दलाई लामा हैं।

लेकिन दलाई लामा के प्रवक्ता चाइम आर छोयकयापा ने दिल्ली में इन आरोपों को सिरे से ख़ारिज कर दिया है।

उनका कहना है कि चीन सरकार तिब्बतियों की समस्या को बंदूक से नहीं सुलझा सकती और उसे तिब्बतियों का मन पढ़ने की कोशिश करनी चाहिए।

उधर तिब्बतियों के आध्यात्मिक नेता दलाई लामा ने कहा है कि ल्हासा की स्थिति को लेकर वो गंभीर रूप से चिंतित हैं।

दलाई लामा ने एक प्रेस वक्तव्य जारी करके चीन से माँग की है वह ल्हासा में बर्बर तरीके से बलप्रयोग करना बंद करे।

उन्होंने कहा है कि तिब्बतियों ने जो प्रदर्शन किए हैं वो चीनी शासन के ख़िलाफ़ लंबे समय से चले आ रहे असंतोष का प्रतीक हैं।