संयुक्त राष्ट्र महासचिव बान की मून ने कहा है कि तूफ़ान से हुई तबाही से अकेले निपटना बर्मा के बूते से बाहर है।
हालाँकि उन्होंने स्थिति को नियंत्रण में बताया है।
तूफ़ान प्रभावित इलाक़ों का दौरा करने के बाद बान की मून शुक्रवार को राजधानी नेपीदॉ में बर्मा के सैन्य शासक जनरल थान श्वे से बातचीत करने वाले हैं जिसमें अंतरराष्ट्रीय सहायताकर्मियों की पहुँच बढ़ाने पर चर्चा होने की संभावना है।
चक्रवातीय तूफ़ान नर्गिस से सबसे बुरी तरह प्रभावित इरावदी क्षेत्र में उन्होंने फ़सलों की बर्बादी और तबाह हुए गाँवों का मुआयना किया।
वो एक राहत शिविर में भी गए। उन्होंने कहा कि उनकी बर्मा यात्रा का मकसद यहाँ की सरकार को ज़्यादा सहायता स्वीकार करने के लिए राजी करना है।
इस तूफ़ान ने 78 हज़ार लोगों की जानें ली है और लगभग 56 हज़ार लोग अभी भी लापता हैं।
संयुक्त राष्ट्र की चिंता
बान की मून ने चिंता जताई है कि संयुक्त राष्ट्र की सहायता लगभग पाँच लाख लोगों तक ही पहुँच पा रही है जबकि बर्मा में लगभग बीस लाख लोगों को तुरंत सहायता की ज़रूरत है।
एक विदेशी डॉक्टर ने बीबीसी से कहा कि अब भी बहुत से लोग छोटे-छोटे तालाबों से पानी पीने के लिए मजबूर हैं। डॉक्टर का कहना है था कि बच्चे और बुज़ुर्ग लोग दस्त, पेट की ख़राबी, डेंगू बुख़ार और अन्य बीमारियों का सामना कर रहे हैं।
इस बीच बान की मून ने इन ख़बरों का खंडन किया है कि उनकी यात्रा के ज़रिए बर्मा के तूफ़ान प्रभावित इलाक़ों की भ्रामक तस्वीर देने की कोशिश की जा रही है।
बान की मून ने अपना बर्मा दौरा शुरू करते हुए कहा था कि लोगों की जान बचाने को प्राथमिकता देनी चाहिए ना कि राजनीति को।
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Friday, May 23, 2008
Thursday, May 22, 2008
'राजनीति नहीं जान बचाने पर ध्यान दें'
संयुक्त राष्ट्र महासचिव बान की मून बर्मा पहुँच गए हैं। वो तूफ़ान से बुरी तरह प्रभावित इरावदी डेल्डा का दौरा करेंगे और बर्मा के सैन्य नेता से भी मिलेंगे।
उन्होंने कहा है कि लोगों की जान बचाने को प्राथमिकता देनी चाहिए ना कि राजनीति को।
बर्मा की सैनिक सरकार ने बड़े पैमाने पर अंतरराष्ट्रीय मदद लेने से इनकार कर दिया था लेकिन दबाव पड़ने के बाद संयुक्त राष्ट्र के कुछ हेलिकॉप्टरों को राहत सामग्री उतारने की अनुमति दी गई।
चक्रवातीय तूफ़ान नर्गिस से हुई तबाही के लगभग बीस दिन बाद भी सहायता एजेंसियों का कहना है कि वो प्रभावित इलाक़ों में अपनी क्षमता का सिर्फ़ तीस फ़ीसदी काम कर पा रहे हैं।
अहम समय
नर्गिस से जान-माल की भारी क्षति हुई है। सरकारी आँकड़ों के मुताबिक मरने वालों की संख्या 78 हज़ार है और 56 हज़ार लोग अभी भी लापता हैं।
हमें बर्मा के लोगों के लिए जहाँ तक संभव हो सके प्रयास करना चाहिए। ये बर्मा के लिए अहम समय है। ख़ुद वहाँ की सरकार मान रही है कि इससे बड़ी विपदा पहले नहीं आई।
बान की मून
लाखों लोगों को तूफ़ान ने बेघर कर दिया। संयुक्त राष्ट्र का कहना है कि 24 लाख लोग इससे प्रभावित हुए हैं जबकि सिर्फ़ एक चौथाई प्रभावितों तक राहत पहुँची है।
ब्रिटेन, फ़्रांस और अमरीका के कई जलपोत खाद्य और अन्य सामानों के साथ लंगर डाले खड़े हैं लेकिन उन्हें बर्मी तटों पर आने की इजाज़त नहीं दी गई है।
बैंकॉक से बर्मा रवाना होने से पहले बान की मून ने कहा, "हमें बर्मा के लोगों के लिए जहाँ तक संभव हो सके प्रयास करना चाहिए। ये बर्मा के लिए अहम समय है। ख़ुद वहाँ की सरकार मान रही है कि इससे बड़ी विपदा पहले नहीं आई।"
संयुक्त राष्ट्र महासचिव गुरुवार को प्रभावित इलाक़ों का दौरा करेंगे और नई राजधानी ने पी तॉ जाएंगे जहाँ वो सैन्य शासक जनरल थान श्वे से मुलाक़ात करेंगे।
उन्होंने कहा है कि लोगों की जान बचाने को प्राथमिकता देनी चाहिए ना कि राजनीति को।
बर्मा की सैनिक सरकार ने बड़े पैमाने पर अंतरराष्ट्रीय मदद लेने से इनकार कर दिया था लेकिन दबाव पड़ने के बाद संयुक्त राष्ट्र के कुछ हेलिकॉप्टरों को राहत सामग्री उतारने की अनुमति दी गई।
चक्रवातीय तूफ़ान नर्गिस से हुई तबाही के लगभग बीस दिन बाद भी सहायता एजेंसियों का कहना है कि वो प्रभावित इलाक़ों में अपनी क्षमता का सिर्फ़ तीस फ़ीसदी काम कर पा रहे हैं।
अहम समय
नर्गिस से जान-माल की भारी क्षति हुई है। सरकारी आँकड़ों के मुताबिक मरने वालों की संख्या 78 हज़ार है और 56 हज़ार लोग अभी भी लापता हैं।
हमें बर्मा के लोगों के लिए जहाँ तक संभव हो सके प्रयास करना चाहिए। ये बर्मा के लिए अहम समय है। ख़ुद वहाँ की सरकार मान रही है कि इससे बड़ी विपदा पहले नहीं आई।
बान की मून
लाखों लोगों को तूफ़ान ने बेघर कर दिया। संयुक्त राष्ट्र का कहना है कि 24 लाख लोग इससे प्रभावित हुए हैं जबकि सिर्फ़ एक चौथाई प्रभावितों तक राहत पहुँची है।
ब्रिटेन, फ़्रांस और अमरीका के कई जलपोत खाद्य और अन्य सामानों के साथ लंगर डाले खड़े हैं लेकिन उन्हें बर्मी तटों पर आने की इजाज़त नहीं दी गई है।
बैंकॉक से बर्मा रवाना होने से पहले बान की मून ने कहा, "हमें बर्मा के लोगों के लिए जहाँ तक संभव हो सके प्रयास करना चाहिए। ये बर्मा के लिए अहम समय है। ख़ुद वहाँ की सरकार मान रही है कि इससे बड़ी विपदा पहले नहीं आई।"
संयुक्त राष्ट्र महासचिव गुरुवार को प्रभावित इलाक़ों का दौरा करेंगे और नई राजधानी ने पी तॉ जाएंगे जहाँ वो सैन्य शासक जनरल थान श्वे से मुलाक़ात करेंगे।
Friday, May 9, 2008
'मदद चाहिए, विदेशी सहायताकर्मी नहीं'
बर्मा ने स्पष्ट किया है कि वह तूफ़ान पीड़ितों के लिए अंतरराष्ट्रीय सहायता चाहता है लेकिन वो किसी भी सूरत में विदेशी सहायताकर्मियों को स्वीकार नहीं करेगा।
बर्मा के विदेश मंत्रालय ने अपने बयान में कहा है कि वह तूफ़ान से बुरी तरह प्रभावित इलाक़ों में ख़ुद राहत और सहायता पहुँचाने की कोशिश कर रहा है।
ये बयान संयुक्त राष्ट्र महासचिव बान की मून की उस टिप्पणी के बाद आया है जिसमें उन्होंने कहा था कि राहत पहुँचाने की व्यवस्था से वो निराश हैं।
संयुक्त राष्ट्र का कहना है कि सहायता के पीछे उसकी कोई राजनीतिक मंशा नहीं है।
इस बीच एक सरकारी अख़बार ने कहा है कि कतर से आए एक विमान में सवार विदेशी राहतकर्मियों और पत्रकारों को वापस लौटा दिया गया है।
संस्था का अनुमान है कि बर्मा के तूफ़ान पीड़ित इलाक़ो में कोई 15 लाख लोग राहत पहुँचने का इंतज़ार कर रहे हैं।
बर्मा के तूफ़ान प्रभावित इलाक़े
उल्लेखनीय है कि पिछले शनिवार आए भीषण तूफ़ान में 22 हज़ार से अधिक लोग मारे गए थे और 41 हज़ार से अधिक लोग लापता बताए गए थे।
बर्मा में अमरीकी राजनयिकों का कहना है कि इस तूफ़ान में एक लाख से अधिक लोगों के मारे जाने की आशंका है।
निराशा
आमतौर पर सहायता संस्थाओं को यह अंदाज़ा हो जाता है कि नुकसान किस पैमाने पर हुआ है।
संयुक्त राष्ट्र यह काम अब तक कर चुका होता, लेकिन उसके चार विशेषज्ञों को अब जाकर बर्मा में प्रवेश का वीज़ा मिला है। ये लोग रविवार से थाईलैंड में इंतज़ार कर रहे थे।
गोदामों में सामग्री नहीं बची है और मानव संसाधन की भारी कमी है. हमें आशा है कि बर्मा की सरकार समझ जाएगी कि और लोगों को बर्मा जाने की अनुमति देना कितना ज़रूरी है
एलिज़ाबेथ बायर्स, संयुक्त राष्ट्र की प्रवक्ता
संयुक्त राष्ट्र की प्रवक्ता ऐलिज़ाबेथ बायर्स ने इसका स्वागत किया है, " इससे लगता है कि बर्मा अपने दरवाज़े खोल रहा है लेकिन बहुत धीरे धीरे।"
उन्होंने कहा, "गोदामों में सामग्री नहीं बची है और मानव संसाधन की भारी कमी है। हमें आशा है कि बर्मा की सरकार समझ जाएगी कि और लोगों को बर्मा जाने की अनुमति देना कितना ज़रूरी है।"
लेकिन संयुक्त राष्ट्र के मानवीय मामलों के प्रमुख जॉन होम्स राहत सहायता को लेकर बर्मा के रवैये से नाराज़ हैं।
वे कहते हैं, "बर्मा को जितनी सहायता की ज़रुरत है उसकी तुलना में उसका रवैया वैसा नहीं है।"
नवीनतम अनुमान के अनुसार मरने वालों की संख्या एक लाख हो सकती है।
बर्मा के विदेश मंत्रालय ने अपने बयान में कहा है कि वह तूफ़ान से बुरी तरह प्रभावित इलाक़ों में ख़ुद राहत और सहायता पहुँचाने की कोशिश कर रहा है।
ये बयान संयुक्त राष्ट्र महासचिव बान की मून की उस टिप्पणी के बाद आया है जिसमें उन्होंने कहा था कि राहत पहुँचाने की व्यवस्था से वो निराश हैं।
संयुक्त राष्ट्र का कहना है कि सहायता के पीछे उसकी कोई राजनीतिक मंशा नहीं है।
इस बीच एक सरकारी अख़बार ने कहा है कि कतर से आए एक विमान में सवार विदेशी राहतकर्मियों और पत्रकारों को वापस लौटा दिया गया है।
संस्था का अनुमान है कि बर्मा के तूफ़ान पीड़ित इलाक़ो में कोई 15 लाख लोग राहत पहुँचने का इंतज़ार कर रहे हैं।
बर्मा के तूफ़ान प्रभावित इलाक़े
उल्लेखनीय है कि पिछले शनिवार आए भीषण तूफ़ान में 22 हज़ार से अधिक लोग मारे गए थे और 41 हज़ार से अधिक लोग लापता बताए गए थे।
बर्मा में अमरीकी राजनयिकों का कहना है कि इस तूफ़ान में एक लाख से अधिक लोगों के मारे जाने की आशंका है।
निराशा
आमतौर पर सहायता संस्थाओं को यह अंदाज़ा हो जाता है कि नुकसान किस पैमाने पर हुआ है।
संयुक्त राष्ट्र यह काम अब तक कर चुका होता, लेकिन उसके चार विशेषज्ञों को अब जाकर बर्मा में प्रवेश का वीज़ा मिला है। ये लोग रविवार से थाईलैंड में इंतज़ार कर रहे थे।
गोदामों में सामग्री नहीं बची है और मानव संसाधन की भारी कमी है. हमें आशा है कि बर्मा की सरकार समझ जाएगी कि और लोगों को बर्मा जाने की अनुमति देना कितना ज़रूरी है
एलिज़ाबेथ बायर्स, संयुक्त राष्ट्र की प्रवक्ता
संयुक्त राष्ट्र की प्रवक्ता ऐलिज़ाबेथ बायर्स ने इसका स्वागत किया है, " इससे लगता है कि बर्मा अपने दरवाज़े खोल रहा है लेकिन बहुत धीरे धीरे।"
उन्होंने कहा, "गोदामों में सामग्री नहीं बची है और मानव संसाधन की भारी कमी है। हमें आशा है कि बर्मा की सरकार समझ जाएगी कि और लोगों को बर्मा जाने की अनुमति देना कितना ज़रूरी है।"
लेकिन संयुक्त राष्ट्र के मानवीय मामलों के प्रमुख जॉन होम्स राहत सहायता को लेकर बर्मा के रवैये से नाराज़ हैं।
वे कहते हैं, "बर्मा को जितनी सहायता की ज़रुरत है उसकी तुलना में उसका रवैया वैसा नहीं है।"
नवीनतम अनुमान के अनुसार मरने वालों की संख्या एक लाख हो सकती है।
Thursday, March 6, 2008
'गज़ा में मानवीय परिस्थितियाँ बदतर'
ब्रिटेन की सहायता एजेंसियों का कहना है कि गज़ा में 1967 में इसराइली कब्ज़े के बाद से अब तक की सबसे ख़राब मानवीय परिस्थितियाँ हैं।
ब्रिटेन की इन एजेंसियों ने वहाँ रह रहे 15 लाख फ़लस्तिनियों के अनुभवों के आधार पर एक रिपोर्ट तैयार की है।
इस एजेंसियों में एमनेस्टी इंटरनेशनल, सेव द चिल्ड्रन, ऑक्सफ़ैम और क्रिस्चन एड शामिल हैं।
सहायता एजेंसियों ने कहा है कि इसराइल ने गज़ा पर जो प्रतिबंध लगा रखे हैं वह अवैधानिक सामूहिक सज़ा है जो सुरक्षा भी प्रदान नहीं कर पा रही है।
दूसरी ओर इसराइल का कहना है कि उसकी सैन्य कार्रवाई और दूसरे क़दम क़ानूनी और जायज़ हैं और इसराइल पर रॉकेट हमले रोकने के लिए ज़रुरी भी हैं।
त्रासदी
इसराइल ने गज़ा पर लगाए गए प्रतिबंधों को और सख़्त कर दिया था जब पिछले साल जून में हमास गुट ने इलाक़े पर कब्ज़ा कर लिया था।
गज़ा के नागरिकों को मूलभूत सुविधाओं से वंचित रखकर उन्हें सज़ा देने को जायज़ नहीं ठहराया जा सकता
केट एलन, एमनेस्टी, यूके
संयुक्त राष्ट्र कई बार चेतावनी दी है कि इसराइल ने जो घेरेबंदी कर रखी है उसके चलते गज़ा में आवश्यक सेवाएँ भी ध्वस्त होने की कगार पर हैं।
अब ब्रितानी सहायता एजेंसियों ने अपनी रिपोर्ट में गज़ा की मानवीय परिस्थितियों का ज़िक्र करते हुए यूरोपीय संघ से अनुरोध किया है कि वे हमास गुट से चर्चा करें।
गज़ा के लोग खाद्य सहायता पर निर्भर करते हैं। एक लाख दस हज़ार लोग जो निजी क्षेत्रों में नौकरी कर रहे थे, उनमें से 75 हज़ार अपनी नौकरियाँ गँवा चुके हैं।
केयर इंटरनेशनल, यूके के ज्योफ़्री डेनिस का कहना है, "अब अगर घेरेबंदी ख़त्म नहीं हुई तो गज़ा को इस त्रासदी से वापस निकालना संभव नहीं होगा और वहाँ शांति की संभावना ख़त्म हो जाएगी।"
जनवरी के बाद से इसराइल ने गज़ा की घेरेबंदी और बढ़ा दी है।
पिछले हफ़्ते इसराइली फ़ौज ने उत्तरी गज़ा पर हमला किया था जिसमें कम से कम 120 लोगों की जानें गई थीं। हताहत होने वालों में कई नागरिक भी थे।
दूसरी ओर फ़लस्तीनी चरमपंथियों ने इसराइल पर रॉकेट हमले जारी रखे हैं। पिछले हफ़्ते दक्षिणी इसराइल के भीतर कर रॉकेट हमले किए गए।
गज़ा में इसराइली टैंक
गज़ा पर इसराइल ने पिछले हफ़्ते ही एक बड़ा हमला किया था
ब्रितानी एजेंसियों का कहना है कि इसराइल को यह अधिकार तो है कि वह अपने नागरिकों की रक्षा करे।
एजेंसियों ने दोनों ही पक्षों में अपील की है कि वे नागरिकों पर अवैधानिक हमले रोकें।
उन्होंने इसराइल से कहा है कि गज़ा के लोगों को भोजन, पीने का साफ़ पानी, बिजली और चिकित्सा सुविधा उपलब्ध करवाने की अपनी ज़िम्मेदारी पूरी करे।
एमनेस्टी, यूके के निदेशक केट एलन का कहना है, "गज़ा के नागरिकों को मूलभूत सुविधाओं से वंचित रखकर उन्हें सज़ा देने को जायज़ नहीं ठहराया जा सकता।"
उनका कहना है, "यह त्रासदी मानव निर्मित है और इसे बदलना चाहिए।"
एजेंसियों ने हमास और फ़तह दोनों ही गुटों से अपील की है कि वे इस त्रासदी को ख़त्म करने के लिए क़दम उठाएँ।
हमास गुट का गज़ा पर कब्ज़ा है और वह इसराइल को मान्यता देने से इनकार करता है। जबकि फ़तह गुट ने महमूद अब्बास के नेतृत्व में पश्चिमी तट पर नियंत्रण संभाल रखा है।
क्रिस्चन एड के दलीप मुखर्जी का कहना है, "गज़ा में तब तक शांति स्थापना नहीं हो सकती जब तक इसराइल, फ़तह और चौगुट (अमरीका, संयुक्त राष्ट्र, यूरोप और रूस) मिलकर हमास से बात न करें और गज़ा के लोगों के भविष्य के प्रति आश्वस्त करें।"
लेकिन अपीलें काम नहीं आ रहीं हैं क्योंकि इस बीच इसराइली मंत्रिमंडल ने गज़ा की घेरेबंदी जारी रखने की अनुशंसा की है।
ब्रिटेन की इन एजेंसियों ने वहाँ रह रहे 15 लाख फ़लस्तिनियों के अनुभवों के आधार पर एक रिपोर्ट तैयार की है।
इस एजेंसियों में एमनेस्टी इंटरनेशनल, सेव द चिल्ड्रन, ऑक्सफ़ैम और क्रिस्चन एड शामिल हैं।
सहायता एजेंसियों ने कहा है कि इसराइल ने गज़ा पर जो प्रतिबंध लगा रखे हैं वह अवैधानिक सामूहिक सज़ा है जो सुरक्षा भी प्रदान नहीं कर पा रही है।
दूसरी ओर इसराइल का कहना है कि उसकी सैन्य कार्रवाई और दूसरे क़दम क़ानूनी और जायज़ हैं और इसराइल पर रॉकेट हमले रोकने के लिए ज़रुरी भी हैं।
त्रासदी
इसराइल ने गज़ा पर लगाए गए प्रतिबंधों को और सख़्त कर दिया था जब पिछले साल जून में हमास गुट ने इलाक़े पर कब्ज़ा कर लिया था।
गज़ा के नागरिकों को मूलभूत सुविधाओं से वंचित रखकर उन्हें सज़ा देने को जायज़ नहीं ठहराया जा सकता
केट एलन, एमनेस्टी, यूके
संयुक्त राष्ट्र कई बार चेतावनी दी है कि इसराइल ने जो घेरेबंदी कर रखी है उसके चलते गज़ा में आवश्यक सेवाएँ भी ध्वस्त होने की कगार पर हैं।
अब ब्रितानी सहायता एजेंसियों ने अपनी रिपोर्ट में गज़ा की मानवीय परिस्थितियों का ज़िक्र करते हुए यूरोपीय संघ से अनुरोध किया है कि वे हमास गुट से चर्चा करें।
गज़ा के लोग खाद्य सहायता पर निर्भर करते हैं। एक लाख दस हज़ार लोग जो निजी क्षेत्रों में नौकरी कर रहे थे, उनमें से 75 हज़ार अपनी नौकरियाँ गँवा चुके हैं।
केयर इंटरनेशनल, यूके के ज्योफ़्री डेनिस का कहना है, "अब अगर घेरेबंदी ख़त्म नहीं हुई तो गज़ा को इस त्रासदी से वापस निकालना संभव नहीं होगा और वहाँ शांति की संभावना ख़त्म हो जाएगी।"
जनवरी के बाद से इसराइल ने गज़ा की घेरेबंदी और बढ़ा दी है।
पिछले हफ़्ते इसराइली फ़ौज ने उत्तरी गज़ा पर हमला किया था जिसमें कम से कम 120 लोगों की जानें गई थीं। हताहत होने वालों में कई नागरिक भी थे।
दूसरी ओर फ़लस्तीनी चरमपंथियों ने इसराइल पर रॉकेट हमले जारी रखे हैं। पिछले हफ़्ते दक्षिणी इसराइल के भीतर कर रॉकेट हमले किए गए।
गज़ा में इसराइली टैंक
गज़ा पर इसराइल ने पिछले हफ़्ते ही एक बड़ा हमला किया था
ब्रितानी एजेंसियों का कहना है कि इसराइल को यह अधिकार तो है कि वह अपने नागरिकों की रक्षा करे।
एजेंसियों ने दोनों ही पक्षों में अपील की है कि वे नागरिकों पर अवैधानिक हमले रोकें।
उन्होंने इसराइल से कहा है कि गज़ा के लोगों को भोजन, पीने का साफ़ पानी, बिजली और चिकित्सा सुविधा उपलब्ध करवाने की अपनी ज़िम्मेदारी पूरी करे।
एमनेस्टी, यूके के निदेशक केट एलन का कहना है, "गज़ा के नागरिकों को मूलभूत सुविधाओं से वंचित रखकर उन्हें सज़ा देने को जायज़ नहीं ठहराया जा सकता।"
उनका कहना है, "यह त्रासदी मानव निर्मित है और इसे बदलना चाहिए।"
एजेंसियों ने हमास और फ़तह दोनों ही गुटों से अपील की है कि वे इस त्रासदी को ख़त्म करने के लिए क़दम उठाएँ।
हमास गुट का गज़ा पर कब्ज़ा है और वह इसराइल को मान्यता देने से इनकार करता है। जबकि फ़तह गुट ने महमूद अब्बास के नेतृत्व में पश्चिमी तट पर नियंत्रण संभाल रखा है।
क्रिस्चन एड के दलीप मुखर्जी का कहना है, "गज़ा में तब तक शांति स्थापना नहीं हो सकती जब तक इसराइल, फ़तह और चौगुट (अमरीका, संयुक्त राष्ट्र, यूरोप और रूस) मिलकर हमास से बात न करें और गज़ा के लोगों के भविष्य के प्रति आश्वस्त करें।"
लेकिन अपीलें काम नहीं आ रहीं हैं क्योंकि इस बीच इसराइली मंत्रिमंडल ने गज़ा की घेरेबंदी जारी रखने की अनुशंसा की है।
Friday, February 22, 2008
बेलग्रेड में अमरीकी दूतावास पर हमला
कोसोवो को स्वतंत्र राष्ट्र का दर्जा देने का विरोध कर रहे लोगों ने सर्बिया की राजधानी बेलग्रेड में पश्चिमी देशों के कई दूतावासों को अपना निशाना बनाया है।
सबसे बड़ा हमला अमरीकी दूतावास पर हुआ है। नक़ाब पहने प्रदर्शनकारियों ने दूतावास के एक हिस्से में आग लगा दी।
दूतावास परिसर से एक बुरी तरह जला हुआ शव मिला है। हालाँकि अभी तक मृत व्यक्ति की पहचान नहीं हो पाई है।
एक वरिष्ठ अमरीकी अधिकारी का कहना है कि दूतावास के सभी अमरीकी कर्मचारी संपर्क में हैं और हो सकता है कि जला हुआ शव अंदर घुसे किसी प्रदर्शनकारी का हो।
संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने इन घटनाओं की निंदा की है।
उधर अमरीका ने आरोप लगाया है कि सर्बिया सरकार ने उसके दूतावास को पर्याप्त सुरक्षा मुहैया नहीं कराई।
अमरीका के अलावा ब्रिटेन, बेल्जियम, क्रोएशिया और तुर्की के दूतावासों पर भी हमले हुए हैं।
बेलग्रेड स्थित सर्बियाई संसद के बाहरी इलाक़ों में धुएँ का गुबार देखा जा सकता है। सुरक्षाकर्मियों ने प्रदर्शनकारियों को नियंत्रित करने के लिए आँसू गैस के गोले छोड़े हैं।
विरोध
उल्लेखनीय है कि जर्मनी और अमरीका के अलावा कई देशों ने कोसोवो की संसद के उस प्रस्ताव को समर्थन दिया है जिसमें उन्होंने आज़ादी की घोषणा कर दी है।
इस मसले पर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में और बाद में यूरोपीय संघ में भी मतभेद खुल कर सामने आ चुके हैं।
बेलग्रेड में बीबीसी संवाददाता का कहना है कि संसद के बाहर हज़ारों की संख्या में प्रदर्शनकारी सर्बिया के प्रधानमंत्री का भाषण सुनने जुटे जहां प्रधानमंत्री ने एक भावुक भाषण दिया।
अपने भाषण में प्रधानमंत्री वोजिस्लाव कोस्तुनिका ने कोसोवो की आज़ादी की घोषणा की कड़ी निंदा की और कहा कि पश्चिमी देश सिर्फ सर्बिया पर दबाव डाल रहे हैं कि वो अपनी पहचान छोड़ दे।
उल्लेखनीय है कि सर्बिया के लोग कोसोवो को अपनी पहचान से जो़ड़कर देखते हैं।
1990 के दशक में यूगोस्लाविया के विभाजन के बाद मुख्य रुप से तीन देश बने क्रोएशिया, सर्बिया और बोस्निया हर्जेगोविना।
कोसोवो सर्बिया का एक हिस्सा है जो बहुत पहले से ही सर्बिया से अलग होने के लिए लड़ता रहा है और क़रीब छह सात साल पहले इसे संयुक्त राष्ट्र के अधीन घोषित कर दिया गया था।
अब कोसोवो की संसद ने खुद को आज़ाद घोषित कर दिया है जिसे पश्चिमी देशों का समर्थन मिल रहा है। इससे सर्बिया काफ़ी नाराज़ है और उसे रुस का समर्थन मिला हुआ है।
सबसे बड़ा हमला अमरीकी दूतावास पर हुआ है। नक़ाब पहने प्रदर्शनकारियों ने दूतावास के एक हिस्से में आग लगा दी।
दूतावास परिसर से एक बुरी तरह जला हुआ शव मिला है। हालाँकि अभी तक मृत व्यक्ति की पहचान नहीं हो पाई है।
एक वरिष्ठ अमरीकी अधिकारी का कहना है कि दूतावास के सभी अमरीकी कर्मचारी संपर्क में हैं और हो सकता है कि जला हुआ शव अंदर घुसे किसी प्रदर्शनकारी का हो।
संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने इन घटनाओं की निंदा की है।
उधर अमरीका ने आरोप लगाया है कि सर्बिया सरकार ने उसके दूतावास को पर्याप्त सुरक्षा मुहैया नहीं कराई।
अमरीका के अलावा ब्रिटेन, बेल्जियम, क्रोएशिया और तुर्की के दूतावासों पर भी हमले हुए हैं।
बेलग्रेड स्थित सर्बियाई संसद के बाहरी इलाक़ों में धुएँ का गुबार देखा जा सकता है। सुरक्षाकर्मियों ने प्रदर्शनकारियों को नियंत्रित करने के लिए आँसू गैस के गोले छोड़े हैं।
विरोध
उल्लेखनीय है कि जर्मनी और अमरीका के अलावा कई देशों ने कोसोवो की संसद के उस प्रस्ताव को समर्थन दिया है जिसमें उन्होंने आज़ादी की घोषणा कर दी है।
इस मसले पर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में और बाद में यूरोपीय संघ में भी मतभेद खुल कर सामने आ चुके हैं।
बेलग्रेड में बीबीसी संवाददाता का कहना है कि संसद के बाहर हज़ारों की संख्या में प्रदर्शनकारी सर्बिया के प्रधानमंत्री का भाषण सुनने जुटे जहां प्रधानमंत्री ने एक भावुक भाषण दिया।
अपने भाषण में प्रधानमंत्री वोजिस्लाव कोस्तुनिका ने कोसोवो की आज़ादी की घोषणा की कड़ी निंदा की और कहा कि पश्चिमी देश सिर्फ सर्बिया पर दबाव डाल रहे हैं कि वो अपनी पहचान छोड़ दे।
उल्लेखनीय है कि सर्बिया के लोग कोसोवो को अपनी पहचान से जो़ड़कर देखते हैं।
1990 के दशक में यूगोस्लाविया के विभाजन के बाद मुख्य रुप से तीन देश बने क्रोएशिया, सर्बिया और बोस्निया हर्जेगोविना।
कोसोवो सर्बिया का एक हिस्सा है जो बहुत पहले से ही सर्बिया से अलग होने के लिए लड़ता रहा है और क़रीब छह सात साल पहले इसे संयुक्त राष्ट्र के अधीन घोषित कर दिया गया था।
अब कोसोवो की संसद ने खुद को आज़ाद घोषित कर दिया है जिसे पश्चिमी देशों का समर्थन मिल रहा है। इससे सर्बिया काफ़ी नाराज़ है और उसे रुस का समर्थन मिला हुआ है।
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