संयुक्त राष्ट्र महासचिव बान की मून बर्मा पहुँच गए हैं। वो तूफ़ान से बुरी तरह प्रभावित इरावदी डेल्डा का दौरा करेंगे और बर्मा के सैन्य नेता से भी मिलेंगे।
उन्होंने कहा है कि लोगों की जान बचाने को प्राथमिकता देनी चाहिए ना कि राजनीति को।
बर्मा की सैनिक सरकार ने बड़े पैमाने पर अंतरराष्ट्रीय मदद लेने से इनकार कर दिया था लेकिन दबाव पड़ने के बाद संयुक्त राष्ट्र के कुछ हेलिकॉप्टरों को राहत सामग्री उतारने की अनुमति दी गई।
चक्रवातीय तूफ़ान नर्गिस से हुई तबाही के लगभग बीस दिन बाद भी सहायता एजेंसियों का कहना है कि वो प्रभावित इलाक़ों में अपनी क्षमता का सिर्फ़ तीस फ़ीसदी काम कर पा रहे हैं।
अहम समय
नर्गिस से जान-माल की भारी क्षति हुई है। सरकारी आँकड़ों के मुताबिक मरने वालों की संख्या 78 हज़ार है और 56 हज़ार लोग अभी भी लापता हैं।
हमें बर्मा के लोगों के लिए जहाँ तक संभव हो सके प्रयास करना चाहिए। ये बर्मा के लिए अहम समय है। ख़ुद वहाँ की सरकार मान रही है कि इससे बड़ी विपदा पहले नहीं आई।
बान की मून
लाखों लोगों को तूफ़ान ने बेघर कर दिया। संयुक्त राष्ट्र का कहना है कि 24 लाख लोग इससे प्रभावित हुए हैं जबकि सिर्फ़ एक चौथाई प्रभावितों तक राहत पहुँची है।
ब्रिटेन, फ़्रांस और अमरीका के कई जलपोत खाद्य और अन्य सामानों के साथ लंगर डाले खड़े हैं लेकिन उन्हें बर्मी तटों पर आने की इजाज़त नहीं दी गई है।
बैंकॉक से बर्मा रवाना होने से पहले बान की मून ने कहा, "हमें बर्मा के लोगों के लिए जहाँ तक संभव हो सके प्रयास करना चाहिए। ये बर्मा के लिए अहम समय है। ख़ुद वहाँ की सरकार मान रही है कि इससे बड़ी विपदा पहले नहीं आई।"
संयुक्त राष्ट्र महासचिव गुरुवार को प्रभावित इलाक़ों का दौरा करेंगे और नई राजधानी ने पी तॉ जाएंगे जहाँ वो सैन्य शासक जनरल थान श्वे से मुलाक़ात करेंगे।
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Thursday, May 22, 2008
Monday, April 21, 2008
चरमपंथियों से बातचीत की नीति का समर्थन
ब्रिटेन के विदेश मंत्री डेविड मिलिबैंड ने कहा है कि ब्रितानी सरकार पाकिस्तान सरकार की चरमपंथियों से बातचीत की नीति का समर्थन करती है।
मिलिबैंड ने कहा कि पाकिस्तान की नई सरकार ने अफ़ग़ानिस्तान की सीमा से सटे कबाइली इलाकों के चरमपंथियों के साथ बातचीत का निर्णय लिया है, जो कि एक सही क़दम है।
चरमपंथ से लड़ने के उपायों पर चर्चा के लिए पेशावर पहुंचे मिलिबैंड ने कहा कि जिन्होंने हिंसा का परित्याग कर दिया है, उन्हें राजनीतिक प्रक्रिया में शामिल करना ज़रूरी है।
उन्होंने कहा कि अफ़ग़ानिस्तान से सटे पाकिस्तान के सीमावर्ती इलाकों में ब्रिटेन की काफी रूचि है क्योंकि इस इलाके से वो चरमपंथ पनप रहा है जो ब्रिटेन तक फैला हुआ है।
पर पाकिस्तान की नई सरकार अभी अपने नए रास्ते की तलाश में जुटी है और उसके लिए चरमपंथियों से बातचीत के ज़रिए किसी निर्णायक स्थिति तक पहुँचना इतना आसान नहीं होगा।
इससे पहले राष्ट्रपति मुशर्रफ़ ने कट्टरपंथियों का मुक़ाबला सैनिक हमलों से किया। उन्हें अमरीका का समर्थन भी प्राप्त था लेकिन वो पिछले 18 महीनों में आत्मघाती हमलों को बढ़ने से नहीं रोक पाए।
समाधान निकले, इसलिए...
पेशावर में ब्रिटेन के विदेश मंत्री उन लोगों से मिले जिनके परिजन हाल के आत्मघाती हमलों में मारे गए थे।
उन्होंने ध्यानपूर्वक उनकी बातें भी सुनीं। कई लोगों ने उनसे कहा कि वो अल क़ायदा के समर्थकों से बातचीत करें।
इसपर मिलिबैंड ने भी स्पष्ट किया कि पाकिस्तान को अफ़ग़ानिस्तान के साथ बातचीत से जोड़ना ही उचित होगा। जो लोग संविधान के तहत काम करना चाहते हैं उन तक हाथ बढ़ाना ही चाहिए।
ब्रिटेन के विदेश मंत्री ने कहा कि मामले का समाधान केवल सैन्य कार्रवाई या फिर केवल बातचीत नहीं है।
इसका समाधान एक ऐसी लंबी प्रक्रिया है जिसमें लाखों लोगों के दिलोदिमाग में जगह बनानी होगी।
उन्होंने साथ ही यह भी कहा कि वो लोगों को ये बताना चाहते हैं कि ब्रिटेन लंबे समय तक पाकिस्तान का सहयोगी बना रहेगा।
पाकिस्तान के उत्तरी पश्चिमी इलाक़े में ब्रिटेन का विशेष ध्यान है क्योंकि ब्रिटेन में व्याप्त ज़्यादातर चरमपंथ की जड़ें यहीं से शुरु होती हैं।
उन्होंने कहा कि ब्रिटेन के लोगों के लिए ये ख़ासी चिंता का विषय है कि वहाँ की चरमपंथी कार्रवाइयों की जाँच में 70 प्रतिशत मामले पाकिस्तान से जुड़े पाए गए।
मिलिबैंड ने कहा कि पाकिस्तान की नई सरकार ने अफ़ग़ानिस्तान की सीमा से सटे कबाइली इलाकों के चरमपंथियों के साथ बातचीत का निर्णय लिया है, जो कि एक सही क़दम है।
चरमपंथ से लड़ने के उपायों पर चर्चा के लिए पेशावर पहुंचे मिलिबैंड ने कहा कि जिन्होंने हिंसा का परित्याग कर दिया है, उन्हें राजनीतिक प्रक्रिया में शामिल करना ज़रूरी है।
उन्होंने कहा कि अफ़ग़ानिस्तान से सटे पाकिस्तान के सीमावर्ती इलाकों में ब्रिटेन की काफी रूचि है क्योंकि इस इलाके से वो चरमपंथ पनप रहा है जो ब्रिटेन तक फैला हुआ है।
पर पाकिस्तान की नई सरकार अभी अपने नए रास्ते की तलाश में जुटी है और उसके लिए चरमपंथियों से बातचीत के ज़रिए किसी निर्णायक स्थिति तक पहुँचना इतना आसान नहीं होगा।
इससे पहले राष्ट्रपति मुशर्रफ़ ने कट्टरपंथियों का मुक़ाबला सैनिक हमलों से किया। उन्हें अमरीका का समर्थन भी प्राप्त था लेकिन वो पिछले 18 महीनों में आत्मघाती हमलों को बढ़ने से नहीं रोक पाए।
समाधान निकले, इसलिए...
पेशावर में ब्रिटेन के विदेश मंत्री उन लोगों से मिले जिनके परिजन हाल के आत्मघाती हमलों में मारे गए थे।
उन्होंने ध्यानपूर्वक उनकी बातें भी सुनीं। कई लोगों ने उनसे कहा कि वो अल क़ायदा के समर्थकों से बातचीत करें।
इसपर मिलिबैंड ने भी स्पष्ट किया कि पाकिस्तान को अफ़ग़ानिस्तान के साथ बातचीत से जोड़ना ही उचित होगा। जो लोग संविधान के तहत काम करना चाहते हैं उन तक हाथ बढ़ाना ही चाहिए।
ब्रिटेन के विदेश मंत्री ने कहा कि मामले का समाधान केवल सैन्य कार्रवाई या फिर केवल बातचीत नहीं है।
इसका समाधान एक ऐसी लंबी प्रक्रिया है जिसमें लाखों लोगों के दिलोदिमाग में जगह बनानी होगी।
उन्होंने साथ ही यह भी कहा कि वो लोगों को ये बताना चाहते हैं कि ब्रिटेन लंबे समय तक पाकिस्तान का सहयोगी बना रहेगा।
पाकिस्तान के उत्तरी पश्चिमी इलाक़े में ब्रिटेन का विशेष ध्यान है क्योंकि ब्रिटेन में व्याप्त ज़्यादातर चरमपंथ की जड़ें यहीं से शुरु होती हैं।
उन्होंने कहा कि ब्रिटेन के लोगों के लिए ये ख़ासी चिंता का विषय है कि वहाँ की चरमपंथी कार्रवाइयों की जाँच में 70 प्रतिशत मामले पाकिस्तान से जुड़े पाए गए।
Thursday, March 6, 2008
'गज़ा में मानवीय परिस्थितियाँ बदतर'
ब्रिटेन की सहायता एजेंसियों का कहना है कि गज़ा में 1967 में इसराइली कब्ज़े के बाद से अब तक की सबसे ख़राब मानवीय परिस्थितियाँ हैं।
ब्रिटेन की इन एजेंसियों ने वहाँ रह रहे 15 लाख फ़लस्तिनियों के अनुभवों के आधार पर एक रिपोर्ट तैयार की है।
इस एजेंसियों में एमनेस्टी इंटरनेशनल, सेव द चिल्ड्रन, ऑक्सफ़ैम और क्रिस्चन एड शामिल हैं।
सहायता एजेंसियों ने कहा है कि इसराइल ने गज़ा पर जो प्रतिबंध लगा रखे हैं वह अवैधानिक सामूहिक सज़ा है जो सुरक्षा भी प्रदान नहीं कर पा रही है।
दूसरी ओर इसराइल का कहना है कि उसकी सैन्य कार्रवाई और दूसरे क़दम क़ानूनी और जायज़ हैं और इसराइल पर रॉकेट हमले रोकने के लिए ज़रुरी भी हैं।
त्रासदी
इसराइल ने गज़ा पर लगाए गए प्रतिबंधों को और सख़्त कर दिया था जब पिछले साल जून में हमास गुट ने इलाक़े पर कब्ज़ा कर लिया था।
गज़ा के नागरिकों को मूलभूत सुविधाओं से वंचित रखकर उन्हें सज़ा देने को जायज़ नहीं ठहराया जा सकता
केट एलन, एमनेस्टी, यूके
संयुक्त राष्ट्र कई बार चेतावनी दी है कि इसराइल ने जो घेरेबंदी कर रखी है उसके चलते गज़ा में आवश्यक सेवाएँ भी ध्वस्त होने की कगार पर हैं।
अब ब्रितानी सहायता एजेंसियों ने अपनी रिपोर्ट में गज़ा की मानवीय परिस्थितियों का ज़िक्र करते हुए यूरोपीय संघ से अनुरोध किया है कि वे हमास गुट से चर्चा करें।
गज़ा के लोग खाद्य सहायता पर निर्भर करते हैं। एक लाख दस हज़ार लोग जो निजी क्षेत्रों में नौकरी कर रहे थे, उनमें से 75 हज़ार अपनी नौकरियाँ गँवा चुके हैं।
केयर इंटरनेशनल, यूके के ज्योफ़्री डेनिस का कहना है, "अब अगर घेरेबंदी ख़त्म नहीं हुई तो गज़ा को इस त्रासदी से वापस निकालना संभव नहीं होगा और वहाँ शांति की संभावना ख़त्म हो जाएगी।"
जनवरी के बाद से इसराइल ने गज़ा की घेरेबंदी और बढ़ा दी है।
पिछले हफ़्ते इसराइली फ़ौज ने उत्तरी गज़ा पर हमला किया था जिसमें कम से कम 120 लोगों की जानें गई थीं। हताहत होने वालों में कई नागरिक भी थे।
दूसरी ओर फ़लस्तीनी चरमपंथियों ने इसराइल पर रॉकेट हमले जारी रखे हैं। पिछले हफ़्ते दक्षिणी इसराइल के भीतर कर रॉकेट हमले किए गए।
गज़ा में इसराइली टैंक
गज़ा पर इसराइल ने पिछले हफ़्ते ही एक बड़ा हमला किया था
ब्रितानी एजेंसियों का कहना है कि इसराइल को यह अधिकार तो है कि वह अपने नागरिकों की रक्षा करे।
एजेंसियों ने दोनों ही पक्षों में अपील की है कि वे नागरिकों पर अवैधानिक हमले रोकें।
उन्होंने इसराइल से कहा है कि गज़ा के लोगों को भोजन, पीने का साफ़ पानी, बिजली और चिकित्सा सुविधा उपलब्ध करवाने की अपनी ज़िम्मेदारी पूरी करे।
एमनेस्टी, यूके के निदेशक केट एलन का कहना है, "गज़ा के नागरिकों को मूलभूत सुविधाओं से वंचित रखकर उन्हें सज़ा देने को जायज़ नहीं ठहराया जा सकता।"
उनका कहना है, "यह त्रासदी मानव निर्मित है और इसे बदलना चाहिए।"
एजेंसियों ने हमास और फ़तह दोनों ही गुटों से अपील की है कि वे इस त्रासदी को ख़त्म करने के लिए क़दम उठाएँ।
हमास गुट का गज़ा पर कब्ज़ा है और वह इसराइल को मान्यता देने से इनकार करता है। जबकि फ़तह गुट ने महमूद अब्बास के नेतृत्व में पश्चिमी तट पर नियंत्रण संभाल रखा है।
क्रिस्चन एड के दलीप मुखर्जी का कहना है, "गज़ा में तब तक शांति स्थापना नहीं हो सकती जब तक इसराइल, फ़तह और चौगुट (अमरीका, संयुक्त राष्ट्र, यूरोप और रूस) मिलकर हमास से बात न करें और गज़ा के लोगों के भविष्य के प्रति आश्वस्त करें।"
लेकिन अपीलें काम नहीं आ रहीं हैं क्योंकि इस बीच इसराइली मंत्रिमंडल ने गज़ा की घेरेबंदी जारी रखने की अनुशंसा की है।
ब्रिटेन की इन एजेंसियों ने वहाँ रह रहे 15 लाख फ़लस्तिनियों के अनुभवों के आधार पर एक रिपोर्ट तैयार की है।
इस एजेंसियों में एमनेस्टी इंटरनेशनल, सेव द चिल्ड्रन, ऑक्सफ़ैम और क्रिस्चन एड शामिल हैं।
सहायता एजेंसियों ने कहा है कि इसराइल ने गज़ा पर जो प्रतिबंध लगा रखे हैं वह अवैधानिक सामूहिक सज़ा है जो सुरक्षा भी प्रदान नहीं कर पा रही है।
दूसरी ओर इसराइल का कहना है कि उसकी सैन्य कार्रवाई और दूसरे क़दम क़ानूनी और जायज़ हैं और इसराइल पर रॉकेट हमले रोकने के लिए ज़रुरी भी हैं।
त्रासदी
इसराइल ने गज़ा पर लगाए गए प्रतिबंधों को और सख़्त कर दिया था जब पिछले साल जून में हमास गुट ने इलाक़े पर कब्ज़ा कर लिया था।
गज़ा के नागरिकों को मूलभूत सुविधाओं से वंचित रखकर उन्हें सज़ा देने को जायज़ नहीं ठहराया जा सकता
केट एलन, एमनेस्टी, यूके
संयुक्त राष्ट्र कई बार चेतावनी दी है कि इसराइल ने जो घेरेबंदी कर रखी है उसके चलते गज़ा में आवश्यक सेवाएँ भी ध्वस्त होने की कगार पर हैं।
अब ब्रितानी सहायता एजेंसियों ने अपनी रिपोर्ट में गज़ा की मानवीय परिस्थितियों का ज़िक्र करते हुए यूरोपीय संघ से अनुरोध किया है कि वे हमास गुट से चर्चा करें।
गज़ा के लोग खाद्य सहायता पर निर्भर करते हैं। एक लाख दस हज़ार लोग जो निजी क्षेत्रों में नौकरी कर रहे थे, उनमें से 75 हज़ार अपनी नौकरियाँ गँवा चुके हैं।
केयर इंटरनेशनल, यूके के ज्योफ़्री डेनिस का कहना है, "अब अगर घेरेबंदी ख़त्म नहीं हुई तो गज़ा को इस त्रासदी से वापस निकालना संभव नहीं होगा और वहाँ शांति की संभावना ख़त्म हो जाएगी।"
जनवरी के बाद से इसराइल ने गज़ा की घेरेबंदी और बढ़ा दी है।
पिछले हफ़्ते इसराइली फ़ौज ने उत्तरी गज़ा पर हमला किया था जिसमें कम से कम 120 लोगों की जानें गई थीं। हताहत होने वालों में कई नागरिक भी थे।
दूसरी ओर फ़लस्तीनी चरमपंथियों ने इसराइल पर रॉकेट हमले जारी रखे हैं। पिछले हफ़्ते दक्षिणी इसराइल के भीतर कर रॉकेट हमले किए गए।
गज़ा में इसराइली टैंक
गज़ा पर इसराइल ने पिछले हफ़्ते ही एक बड़ा हमला किया था
ब्रितानी एजेंसियों का कहना है कि इसराइल को यह अधिकार तो है कि वह अपने नागरिकों की रक्षा करे।
एजेंसियों ने दोनों ही पक्षों में अपील की है कि वे नागरिकों पर अवैधानिक हमले रोकें।
उन्होंने इसराइल से कहा है कि गज़ा के लोगों को भोजन, पीने का साफ़ पानी, बिजली और चिकित्सा सुविधा उपलब्ध करवाने की अपनी ज़िम्मेदारी पूरी करे।
एमनेस्टी, यूके के निदेशक केट एलन का कहना है, "गज़ा के नागरिकों को मूलभूत सुविधाओं से वंचित रखकर उन्हें सज़ा देने को जायज़ नहीं ठहराया जा सकता।"
उनका कहना है, "यह त्रासदी मानव निर्मित है और इसे बदलना चाहिए।"
एजेंसियों ने हमास और फ़तह दोनों ही गुटों से अपील की है कि वे इस त्रासदी को ख़त्म करने के लिए क़दम उठाएँ।
हमास गुट का गज़ा पर कब्ज़ा है और वह इसराइल को मान्यता देने से इनकार करता है। जबकि फ़तह गुट ने महमूद अब्बास के नेतृत्व में पश्चिमी तट पर नियंत्रण संभाल रखा है।
क्रिस्चन एड के दलीप मुखर्जी का कहना है, "गज़ा में तब तक शांति स्थापना नहीं हो सकती जब तक इसराइल, फ़तह और चौगुट (अमरीका, संयुक्त राष्ट्र, यूरोप और रूस) मिलकर हमास से बात न करें और गज़ा के लोगों के भविष्य के प्रति आश्वस्त करें।"
लेकिन अपीलें काम नहीं आ रहीं हैं क्योंकि इस बीच इसराइली मंत्रिमंडल ने गज़ा की घेरेबंदी जारी रखने की अनुशंसा की है।
Wednesday, February 27, 2008
इराक़ युद्ध संबंधी ब्यौरा जारी करने का आदेश
ब्रिटेन सरकार को ये आदेश दिया गया है कि वो कैबिनेट की उस महत्वपूर्ण बैठक का ब्यौरा सार्वजनिक करे जिसमें इराक़ युद्ध की क़ानूनी वैधता पर चर्चा हुई थी।
ब्रिटेन के सूचना आयुक्त यानि इंफ़र्मेशन कमिश्नर रिचर्ड थॉमस ने कहा कि ये मुद्दा 'गंभीर और विवादित है' इसीलिए इन दस्तावेज़ों को सार्वजनिक किया जाना चाहिए।
ब्रिटेन सरकार के लिए यह एक बड़ा झटका है क्योंकि वो इस जानकारी को सार्वजनिक करने से कतराती रही है।
इराक़ युद्ध से पहले ब्रिटेन की कैबिनेट की दो अहम बैठकें हुई थीं। अब शायद लोग ये जान पाएं कि इन बैठकों में हुआ क्या था और ये संभव हुआ है ब्रिटेन के सूचना आयुक्त के अभूतपूर्व फ़ैसले की वजह से।
हालांकि ब्रिटेन सरकार ने कहा था कि ये जानकारी सार्वजनिक नहीं की जानी चाहिए और इसके लिए दो कारण बताए थे।
पहला यह कि इससे मंत्रिमंडल की सम्मिलित ज़िम्मेदारी पर असर पड़ेगा और दूसरा यह कि अहम बैठकों में नेता खुलकर किसी मुद्दे पर बात करने से कतराएँगे।
दलील नाकाफ़ी
लेकिन सूचना आयुक्त रिचर्ड थॉमस ने इन कारणों को नाकाफ़ी क़रार देते हुए कहा कि जनता को इराक़ युद्ध के असल कारण जानने का हक़ है।
टोनी ब्लेयर
आदेश टोनी ब्लेयर के कार्यकाल की एक कैबिनेट बैठक से संबंधित है
यह एक एहम फ़ैसला है। जनता शायद अब यह जान पाए कि ब्रिटेन के किस मंत्री ने इराक़ युद्ध पर क्या सवाल उठाए, किसने युद्ध का विरोध किया और इस पूरे मुद्दे पर मंत्रिमंडल ने कितने विस्तार से बहस की।
ब्रिटेन की तीसरी सबसे बड़ी पार्टी लिबरल डेमोक्रैट्स, ने जानकारी सार्वजनिक करने की घोषणा का स्वागत किया है।
पार्टी के विदेश मामलों के प्रवक्ता एड डेवी कहते हैं, "लेबर पार्टी ने गुपचुप काम करने के लिए जो गोपनीयता की दीवार खड़ी की थी उसकी दीवार ईंट-दर-ईंट टूट रही है। लेबर पार्टी ने बहुत कुछ छिपाया है और सूचना आयुक्त की बदौलत जनता कुछ समय में सच जान सकेगी लेकिन यह शर्म की बात है कि सरकार से दस्तावेज़ एक-एक करके छीनने पड़ रहे हैं।"
उधर डाउनिंग स्ट्रीट के अधिकारियों का कहना है कि वो इस के ख़िलाफ़ अपील करने पर विचार कर रहे हैं।
साथ ही उन्होंने यह भी कहा है कि दस्तावेज के सार्वजनिक होने के बाद भी शायद ज़्यादा जानकारी सामने न आए क्योंकि मंत्रिमंडल की बैठकों के मिनिट ज़्यादा विस्तार से नहीं लिए जाते हैं, हरेक शब्द लिखा नहीं जाता है।
ब्रिटेन के सूचना आयुक्त यानि इंफ़र्मेशन कमिश्नर रिचर्ड थॉमस ने कहा कि ये मुद्दा 'गंभीर और विवादित है' इसीलिए इन दस्तावेज़ों को सार्वजनिक किया जाना चाहिए।
ब्रिटेन सरकार के लिए यह एक बड़ा झटका है क्योंकि वो इस जानकारी को सार्वजनिक करने से कतराती रही है।
इराक़ युद्ध से पहले ब्रिटेन की कैबिनेट की दो अहम बैठकें हुई थीं। अब शायद लोग ये जान पाएं कि इन बैठकों में हुआ क्या था और ये संभव हुआ है ब्रिटेन के सूचना आयुक्त के अभूतपूर्व फ़ैसले की वजह से।
हालांकि ब्रिटेन सरकार ने कहा था कि ये जानकारी सार्वजनिक नहीं की जानी चाहिए और इसके लिए दो कारण बताए थे।
पहला यह कि इससे मंत्रिमंडल की सम्मिलित ज़िम्मेदारी पर असर पड़ेगा और दूसरा यह कि अहम बैठकों में नेता खुलकर किसी मुद्दे पर बात करने से कतराएँगे।
दलील नाकाफ़ी
लेकिन सूचना आयुक्त रिचर्ड थॉमस ने इन कारणों को नाकाफ़ी क़रार देते हुए कहा कि जनता को इराक़ युद्ध के असल कारण जानने का हक़ है।
टोनी ब्लेयर
आदेश टोनी ब्लेयर के कार्यकाल की एक कैबिनेट बैठक से संबंधित है
यह एक एहम फ़ैसला है। जनता शायद अब यह जान पाए कि ब्रिटेन के किस मंत्री ने इराक़ युद्ध पर क्या सवाल उठाए, किसने युद्ध का विरोध किया और इस पूरे मुद्दे पर मंत्रिमंडल ने कितने विस्तार से बहस की।
ब्रिटेन की तीसरी सबसे बड़ी पार्टी लिबरल डेमोक्रैट्स, ने जानकारी सार्वजनिक करने की घोषणा का स्वागत किया है।
पार्टी के विदेश मामलों के प्रवक्ता एड डेवी कहते हैं, "लेबर पार्टी ने गुपचुप काम करने के लिए जो गोपनीयता की दीवार खड़ी की थी उसकी दीवार ईंट-दर-ईंट टूट रही है। लेबर पार्टी ने बहुत कुछ छिपाया है और सूचना आयुक्त की बदौलत जनता कुछ समय में सच जान सकेगी लेकिन यह शर्म की बात है कि सरकार से दस्तावेज़ एक-एक करके छीनने पड़ रहे हैं।"
उधर डाउनिंग स्ट्रीट के अधिकारियों का कहना है कि वो इस के ख़िलाफ़ अपील करने पर विचार कर रहे हैं।
साथ ही उन्होंने यह भी कहा है कि दस्तावेज के सार्वजनिक होने के बाद भी शायद ज़्यादा जानकारी सामने न आए क्योंकि मंत्रिमंडल की बैठकों के मिनिट ज़्यादा विस्तार से नहीं लिए जाते हैं, हरेक शब्द लिखा नहीं जाता है।
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