ब्रिटेन के विदेश मंत्री डेविड मिलिबैंड ने कहा है कि ब्रितानी सरकार पाकिस्तान सरकार की चरमपंथियों से बातचीत की नीति का समर्थन करती है।
मिलिबैंड ने कहा कि पाकिस्तान की नई सरकार ने अफ़ग़ानिस्तान की सीमा से सटे कबाइली इलाकों के चरमपंथियों के साथ बातचीत का निर्णय लिया है, जो कि एक सही क़दम है।
चरमपंथ से लड़ने के उपायों पर चर्चा के लिए पेशावर पहुंचे मिलिबैंड ने कहा कि जिन्होंने हिंसा का परित्याग कर दिया है, उन्हें राजनीतिक प्रक्रिया में शामिल करना ज़रूरी है।
उन्होंने कहा कि अफ़ग़ानिस्तान से सटे पाकिस्तान के सीमावर्ती इलाकों में ब्रिटेन की काफी रूचि है क्योंकि इस इलाके से वो चरमपंथ पनप रहा है जो ब्रिटेन तक फैला हुआ है।
पर पाकिस्तान की नई सरकार अभी अपने नए रास्ते की तलाश में जुटी है और उसके लिए चरमपंथियों से बातचीत के ज़रिए किसी निर्णायक स्थिति तक पहुँचना इतना आसान नहीं होगा।
इससे पहले राष्ट्रपति मुशर्रफ़ ने कट्टरपंथियों का मुक़ाबला सैनिक हमलों से किया। उन्हें अमरीका का समर्थन भी प्राप्त था लेकिन वो पिछले 18 महीनों में आत्मघाती हमलों को बढ़ने से नहीं रोक पाए।
समाधान निकले, इसलिए...
पेशावर में ब्रिटेन के विदेश मंत्री उन लोगों से मिले जिनके परिजन हाल के आत्मघाती हमलों में मारे गए थे।
उन्होंने ध्यानपूर्वक उनकी बातें भी सुनीं। कई लोगों ने उनसे कहा कि वो अल क़ायदा के समर्थकों से बातचीत करें।
इसपर मिलिबैंड ने भी स्पष्ट किया कि पाकिस्तान को अफ़ग़ानिस्तान के साथ बातचीत से जोड़ना ही उचित होगा। जो लोग संविधान के तहत काम करना चाहते हैं उन तक हाथ बढ़ाना ही चाहिए।
ब्रिटेन के विदेश मंत्री ने कहा कि मामले का समाधान केवल सैन्य कार्रवाई या फिर केवल बातचीत नहीं है।
इसका समाधान एक ऐसी लंबी प्रक्रिया है जिसमें लाखों लोगों के दिलोदिमाग में जगह बनानी होगी।
उन्होंने साथ ही यह भी कहा कि वो लोगों को ये बताना चाहते हैं कि ब्रिटेन लंबे समय तक पाकिस्तान का सहयोगी बना रहेगा।
पाकिस्तान के उत्तरी पश्चिमी इलाक़े में ब्रिटेन का विशेष ध्यान है क्योंकि ब्रिटेन में व्याप्त ज़्यादातर चरमपंथ की जड़ें यहीं से शुरु होती हैं।
उन्होंने कहा कि ब्रिटेन के लोगों के लिए ये ख़ासी चिंता का विषय है कि वहाँ की चरमपंथी कार्रवाइयों की जाँच में 70 प्रतिशत मामले पाकिस्तान से जुड़े पाए गए।
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