भारत के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह शुक्रवार को दो दिनों की भूटान यात्रा पर जा रहे हैं।
मनमोहन सिंह दुनिया के सबसे नए लोकतंत्र भूटान की यात्रा पर पहुँचने वाले पहले विश्वनेता हैं और वे संसद के दोनों सदनों की संयुक्त बैठक को संबोधित करेंगे।
मनमोहन सिंह भूटान के प्रधानमंत्री जिग्मे थिनली से भी मिलेंगे।
वे एक पनबिजली योजना का लोकार्पण करेंगे और एक नई परियोजना का शिलान्यास करेंगे।
इसके अलावा दोनों देशों के बीच कई महत्वपूर्ण समझौते होने की संभावना है।
अहम यात्रा
मनमोहन सिंह की भूटान यात्रा ऐसे समय में हो रही है जब वहाँ वांग्चुक राजवंश के सौ साल पूरे हो रहे हैं और नए राजा जिग्मे खेशर नांग्याल इसी साल गद्दी पर बैठे हैं।
भूटान ने पहली बार लोकतंत्र में क़दम रखे हैं और हाल ही में वहाँ नई संसद के चुनाव हुए हैं।
यही समय है जब भूटान में दसवीं पंचवर्षीय योजना शुरु हो रही है।
जैसा कि भारत के विदेश सचिव शिवशंकर मेनन ने बताया यही वो साल है जब भारत-भूटान संबंधों के पचास साल पूरे हो रहे हैं।
उन्होंने बताया, "पंडित जवाहर लाल नेहरु ने वर्ष 1958 में एक महीने की भूटान की यात्रा पर गए थे। उन्होंने घोड़े और याक से अपनी यात्रा पूरी की थी। अब बदले वक़्त और विकास के फ़र्क को आप ख़ुद देख सकते हैं कि मनमोहन सिंह सीधी उड़ान से वहाँ पहुँच रहे हैं।"
भारत सड़क निर्माण, स्कूल और स्वास्थ्य सभी क्षेत्रों में भूटान की बड़ी मदद करता रहा है लेकिन अब उसकी नज़र भूटान की पनबिजली क्षमता पर है।
पनबिजली
विश्लेषक मानते हैं कि भारत के साथ 700 किलोमीटर की सीमा बाँटने वाले भूटान के साथ संबंध इसलिए भी फ़ायदेमंद है क्योंकि वहाँ पनबिजली पैदा करने की बड़ी क्षमता है।
जैसा कि भारत के विदेश सचिव ने बताया कि भूटान में 30 हज़ार मेगावाट पनबिजली पैदा करने की क्षमता है लेकिन अभी तक दोनों देशों ने मिलकर 1,400 मेगावाट की क्षमता का ही इस्तेमाल किया है।
इस दौरे में मनमोहन सिंह 1020 मेगावाट की क्षमता वाले ताला पनबिजली परियोजना का लोकार्पण करेंगे जिसका निर्माण भारत के सहयोग से हुआ है।
इसके अलावा वे 1095 मेगावाट की क्षमता वाले पुनत्सांग्चू पनबिजली परियोजना का शिलान्यास भी करेंगे।
उल्लेखनीय है कि भूटान अपने यहाँ पैदा होने वाली बिजली का अतिरिक्त हिस्सा भारत को बेचता है।
भारत का लक्ष्य है कि वहाँ वर्ष 2020 तक 5000 मेगावाट पनबिजली पैदा करने की क्षमता विकसित की जा सके।
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Friday, May 16, 2008
Monday, March 24, 2008
राजतंत्र की पहल पर लोकतंत्र के लिए मतदान
सौ साल से ज़्यादा की राजशाही के बाद भूटान में पहली बार सोमवार को लोकतांत्रिक चुनाव हो रहे हैं। इस ऐतिहासिक चुनाव में भूटान की जनता 47 संसदीय सीटों के लिए अपनी प्रतिनिधियों का चुनाव करेगी।
भारत और चीन के बीच स्थित इस छोटे देश के शाही परिवार ने ही लोकतांत्रिक चुनाव की पहल की थी जिसका मानना है कि अब देश की जनता अपने प्रतिनिधियों को चुनने के लिए तैयार हो गई है।
हालाँकि बड़ी संख्या में लोग यह भी मानते हैं कि वे राजशाही से ख़ुश हैं। भूटान के पहले संसदीय चुनाव में सिर्फ़ दो पार्टियाँ ही अपना क़िस्मत आज़मा रही हैं।
दोनों पार्टियों पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी और भूटान हॉर्मनी पार्टी ने जनता से वादा किया है कि चुनाव जीतने पर वे देश की आर्थिक प्रगति पर ध्यान देंगी और बुनियादी सुविधाओं को बेहतर बनाएँगी।
दोनों पार्टियों का नेतृत्व पूर्व मंत्रियों के हाथ में है। पीपुल्ल डेमोक्रेटिक पार्टी की कमान संभाल रहे हैं संगय नगेडप, जो पूर्व राजा की पत्नी के भाई हैं। जबकि भूटान हॉर्मनी पार्टी का नेतृत्व जिग्मी थिनली कर रहे हैं और शाही परिवार से उनका कोई संबंध नहीं है।
पार्टियाँ
लेकिन उन्होंने अपनी पार्टी को भूटान की आम जनता से जोड़ने की कोशिश की है। भूटान में संसद के ऊपरी सदन के लिए दिसंबर में चुनाव हुए थे।
मतपेटियाँ दूर-दराज़ के इलाक़ों तक पहुँचा दी गई हैं
भूटान में उस समय से लोकतंत्र की तैयारी चल रही है जब पूर्व शासक जिग्मे सिंग्ये वांगचुक ने चुनी हुई सरकार को सत्ता सौंपने का फ़ैसला किया था।
इस समय भूटान के राजा हैं जिग्मे खेसर नमग्याल वांगचुक, जो जिग्मे सिंग्ये वांगचुक के बेटे हैं। जो लोकतांत्रिक सरकार आने के बाद भी देश के प्रमुख बने रहेंगे और उनके पास कुछ अधिकार भी रहेंगे।
भूटान के कई लोग राजशाही से ख़ुश हैं और उन्हें काफ़ी दुश है कि उनके राजा गद्दी छोड़ रहे हैं।
42 वर्षीय व्यापारी किनले पेंजोर ने समाचार एजेंसी रॉयटर्स को बताया- हर कोई इससे काफ़ी दुख है कि राजा हट रहे हैं। लेकिन मैं मानता हूँ कि लोकतंत्र भी अच्छा रहेगा। अब हम सर्वश्रेष्ठ प्रतिनिधियों को ही चुनेंगे।
राजशाही की लोकप्रियता के बावजूद भूटान में कई तरह की समस्याएँ हैं। हाल के वर्षों में ग़रीबी बढ़ी है और बेरोज़गारी भी।
भूटान की राजधानी थिम्पू की सड़कें ख़ाली-ख़ाली हैं और दूकानें बंद हैं क्योंकि हज़ारों लोग अपने-अपने संसदीय क्षेत्र में वोट डालने चले गए हैं।
भारत और चीन के बीच स्थित इस छोटे देश के शाही परिवार ने ही लोकतांत्रिक चुनाव की पहल की थी जिसका मानना है कि अब देश की जनता अपने प्रतिनिधियों को चुनने के लिए तैयार हो गई है।
हालाँकि बड़ी संख्या में लोग यह भी मानते हैं कि वे राजशाही से ख़ुश हैं। भूटान के पहले संसदीय चुनाव में सिर्फ़ दो पार्टियाँ ही अपना क़िस्मत आज़मा रही हैं।
दोनों पार्टियों पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी और भूटान हॉर्मनी पार्टी ने जनता से वादा किया है कि चुनाव जीतने पर वे देश की आर्थिक प्रगति पर ध्यान देंगी और बुनियादी सुविधाओं को बेहतर बनाएँगी।
दोनों पार्टियों का नेतृत्व पूर्व मंत्रियों के हाथ में है। पीपुल्ल डेमोक्रेटिक पार्टी की कमान संभाल रहे हैं संगय नगेडप, जो पूर्व राजा की पत्नी के भाई हैं। जबकि भूटान हॉर्मनी पार्टी का नेतृत्व जिग्मी थिनली कर रहे हैं और शाही परिवार से उनका कोई संबंध नहीं है।
पार्टियाँ
लेकिन उन्होंने अपनी पार्टी को भूटान की आम जनता से जोड़ने की कोशिश की है। भूटान में संसद के ऊपरी सदन के लिए दिसंबर में चुनाव हुए थे।
मतपेटियाँ दूर-दराज़ के इलाक़ों तक पहुँचा दी गई हैं
भूटान में उस समय से लोकतंत्र की तैयारी चल रही है जब पूर्व शासक जिग्मे सिंग्ये वांगचुक ने चुनी हुई सरकार को सत्ता सौंपने का फ़ैसला किया था।
इस समय भूटान के राजा हैं जिग्मे खेसर नमग्याल वांगचुक, जो जिग्मे सिंग्ये वांगचुक के बेटे हैं। जो लोकतांत्रिक सरकार आने के बाद भी देश के प्रमुख बने रहेंगे और उनके पास कुछ अधिकार भी रहेंगे।
भूटान के कई लोग राजशाही से ख़ुश हैं और उन्हें काफ़ी दुश है कि उनके राजा गद्दी छोड़ रहे हैं।
42 वर्षीय व्यापारी किनले पेंजोर ने समाचार एजेंसी रॉयटर्स को बताया- हर कोई इससे काफ़ी दुख है कि राजा हट रहे हैं। लेकिन मैं मानता हूँ कि लोकतंत्र भी अच्छा रहेगा। अब हम सर्वश्रेष्ठ प्रतिनिधियों को ही चुनेंगे।
राजशाही की लोकप्रियता के बावजूद भूटान में कई तरह की समस्याएँ हैं। हाल के वर्षों में ग़रीबी बढ़ी है और बेरोज़गारी भी।
भूटान की राजधानी थिम्पू की सड़कें ख़ाली-ख़ाली हैं और दूकानें बंद हैं क्योंकि हज़ारों लोग अपने-अपने संसदीय क्षेत्र में वोट डालने चले गए हैं।
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