दुनिया के बढ़ते तापमान को लेकर बार-बार वैज्ञानिक ये चेतावनी देने की कोशिश कर रहे हैं कि अगर तुरंत कुछ नहीं किया गया तो दुनिया को बचाना बहुत ही मुश्किल हो जाएगा ।
इसी संबंध में सोमवार को थाईलैंड की राजधानी बैंकॉक में एक सम्मेलन में चर्चा हो रही है ।
इस सम्मेलन में वैज्ञानिक राजनेताओं को ये बताने की कोशिश करेंगे कि उन्हें कितनी तेज़ी से काम करने की ज़रूरत है और उनकी इन कोशिशों पर ख़र्च कितना आएगा ।
जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र द्वारा गठित कई देशों के सरकारों के पैनल की इस साल होनेवाली ये तीसरी बैठक है ।
इसका उद्देश्य ये है कि जलवायु परिवर्तन के संबंध में तकनीक और अर्थव्यवस्था के विभिन्न पहलुओं के बारे में एक निश्चित दिशानिर्देश तय किए जाएँ ।
कहा गया है कि विभिन्न देश जलवायु की रक्षा कर सकते हैं लेकिन तभी जब कि वो तत्काल ऐसी नीतियाँ तय करें जिनसे 2030 तक पूरी दुनिया में हानिकारक कार्बन डाइऑक्साइड गैसों के उत्सर्जन पर लगाम लगाई जा सके ।
वैज्ञानिकों को भय है कि यदि ऐसा नहीं हुआ तो ऐसे परिवर्तन होने शुरू हो जाएँगे जिनको पलटा नहीं जा सकेगा ।
इस पैनल के अध्यक्ष आरके पचौरी कहते हैं, "इन उपायों के लिए तत्काल कुछ करना होगा क्योंकि जलवायु परिवर्तन के कुछ प्रभावों को रोकने में पहले ही देर हो चुकी है ।"
लंबा प्रभाव
ग्रीनहाउस गैसों के प्रसार को रोकने के लिए हम आज चाहे जो कर लें, पूरी व्यवस्था में जो एक जड़ता समा चुकी है उससे जलवालु परिवर्तन का प्रभाव लंबे समय तक बना रहेगा ।
उदाहरण के तौर पर समुद्रों का जलस्तर बढ़ता रहेगा, दशकों तक नहीं बल्कि सदियों तक ।
लेकिन अमरीका और चीन इन गैसों के उत्सर्जन की सीमा तय करने के बारे में होनेवाली किसी भी चर्चा से बचना चाहते हैं क्योंकि इससे उनके ऊपर दबाव बढ़ता है कि वो अपने यहाँ प्रदूषण पर नियंत्रण करें ।
बैंकॉक में होनेवाले इस सम्मेलन की रिपोर्ट में जो कुछ कहा जाएगा वही कुछ बातें दुनिया के शक्तिशाली देशों के उन राष्ट्राध्यक्षों से भी सुनने को मिलेगी जो इस वर्ष जून में जी-8 देशों के शिखर सम्मेलन में जलवायु परिवर्तन के बारे में बातचीत करने के लिए आमने-सामने बैठेंगे ।
Monday, April 30, 2007
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment