Wednesday, May 2, 2007

'परमाणु समझौते पर उल्लेखनीय प्रगति'

भारत और अमरीका ने कहा है कि परमाणु समझौते पर चली बातचीत में उल्लेखनीय प्रगति हुई है और हो सकता है कि एक माह के भीतर ही असहमति के मुद्दे सुलझा लिए जाएँ ।

अमरीकी विदेश विभाग के प्रवक्ता सीन मैक्कॉरमैक ने एक लिखित बयान में कहा, "बातचीत साकारात्मक रही और विभिन्न मुद्दों पर हुई प्रगति से अमरीका उत्साहित है । "
अमरीकी विदेश उपमंत्री निकोलस बर्न्स और भारतीय विदेश सचिव शिव शंकर मेनन के बीच दो दिनों तक चली बातचीत समझौते से जुड़े कई पहलुओं पर बातचीत हुई ।
ग़ौरतलब है कि 18 जुलाई 2005 को प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और अमरीकी राष्ट्रपति जॉर्ज बुश के बीच असैनिक परमाणु समझौते पर सहमति बनी थी और इसी के अनुरूप जुलाई 2006 में भारत ने सैनिक-असैनिक परमाणु रिएक्टरों को अलग करने का खाका भी तैयार कर लिया था ।
इसके बावजूद परमाणु इंधन के दोबारा इस्तेमाल और परमाणु परीक्षण करने के अधिकार पर दोनों देशों के बीच मतभेद पैदा हो गए थे ।
लेकिन ताज़ा दौर की बातचीत के बाद निकोलस बर्न्स ने कहा, "हम कई मुद्दों पर आगे बढ़े। मैं उम्मीद करता हूँ कि बाकी मतभेद भी आने वाले हफ़्तों में दूर हो जाएंगी । मैं इस माह भारत जाकर फिर बातचीत करुंगा । "
उधर भारतीय विदेश सचिव शिवशंकर मेनन ने कहा, "जो हमारी बातचीत हुई है और जिस तरह हम क़रीब आए हैं, उससे जल्दी ही समझौता आगे बढ़ सकता है । "
यह पूछने पर कि परमाणु परीक्षण का अधिकार रखने के भारतीय रूख़ पर क्या हुआ, उनका कहना था, "अब भी संदेह जताने से कोई फ़ायदा नहीं है । "

समझौता

दोनों देशों के बीच जुलाई 2005 में परमाणु समझौता हुआ था लेकिन कुछ मुद्दों पर अब भी अंतिम फ़ैसला नहीं हुआ है ।
अमरीकी अधिकारियों ने कहा था कि बातचीत की गति को लेकर वे नाखुश हैं ।
इस समझौते के बाद भारत को अमरीका से असैनिक कार्यों के परमाणु तकनीक मिल सकेगी ।
भारत ने परमाणु अप्रसार संधि पर हस्ताक्षर नहीं किए हैं । कई विशलेषकों का कहना है कि इस संधि के चलते भारत के परमाणु हथियार कार्यक्रम को बढ़ावा मिलेगा।और ईरान जैसे देशों को ग़लत संदेश जा सकता है ।
भारत ने ये बात स्पष्ट कर दी है कि अंतिम समझौते के तहत उसे बाध्य नहीं किया जाना चाहिए कि वो ईरान पर अमरीकी नीति का समर्थन करे या उसके मिसाइल कार्यक्रम पर रोक लगाई जाए ।
पिछले वर्ष अमरीकी राष्ट्रपति जॉर्ज बुश की भारत यात्रा के दौरान परमाणु समझौते पर सहमति हुई थी ।
उसके बाद अमरीकी कांग्रेस ने भी इसे अपने मंज़ूरी दे दी है और जॉर्ज बुश के हस्ताक्षर के बाद ये क़ानून की शक्ल भी ले चुका है ।
लेकिन भारत सरकार को देश में इस बात को लेकर आलोचना झेलनी पड़ी है कि समझौते से परमाणु मुद्दों को लेकर भारत की स्वतंत्रा छिन जाएगी ।
एएफ़पी के मुताबिक समझौते के इस प्रावधान को लेकर मतभेद बना हुआ है कि अगर भारत ने परमाणु परीक्षण किया तो अमरीका ईंधन और उपकरणों की सप्लाई बंद कर सकता है ।

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