अमरीकी सुप्रीम कोर्ट के एक फ़ैसले से बुश प्रशासन को झटका लगा है।
इस बार सुप्रीम कोर्ट ने ग्वांतानामो बे के बंदियों की एक याचिका पर सुनवाई करना स्वीकार कर लिया है। इस याचिका में अनुरोध किया गया है कि उन्हें अमरीकी अदालतों में अपील करने का अधिकार दिया जाए ।
सुप्रीम कोर्ट ने इस याचिका को स्वीकार करते हुए अप्रैल के अपने फ़ैसले को उलट दिया है ।
तब सुप्रीम कोर्ट ने कहा कहा था कि बंदियों को सामान्य अदालतों में अपील करने के अधिकार पर वह कोई फ़ैसला नहीं करना चाहता ।
अमरीकी सरकार चाहती है कि ग्वांतानामो बे के बंदियों के मामलों की सुनवाई सिर्फ़ विशेष सैन्य अदालतों में हो ।
उल्लेखनीय है कि ग्वांतानामो बे में क़ैदियों के साथ हो रहे बर्ताव का अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार संस्थाएँ निंदा करती रही हैं। अमरीका के कई मित्र देश भी इसका विरोध करते रहे हैं ।
ग्वांतानामो बे में 2001 और 2002 में 'आतंक के ख़िलाफ़ युद्ध' के दौरान गिरफ़्तार किए गए लोगों को यहाँ रखा गया है। इस बंदीगृह से प्रताड़ना और दुर्व्यवहार की ख़बरें मिलती रही हैं ।
वकीलों का अनुरोध
बुश प्रशासन ने पिछले साल एक क़ानून बनाया था और इसे संसद से पारित करवाया था।
इसके तहत ग्वांतानामो बे के बंदियों को अमरीका की सामान्य अदालतों में अपील करने के अधिकार से वंचित कर दिया गया था।
इस क़ानून में प्रावधान है कि ग्वांतानामो बे के बंदियों की मामले सिर्फ़ विशेष सैन्य अदालत में सुने जाएँगे न कि अमरीका की सामान्य अदालतों में ।
इसी साल फ़रवरी में कोलंबिया की एक निचली अदालत ने इस क़ानून को दुरुस्त बताया था ।
बाद में अप्रैल में सुप्रीम कोर्ट ने कोलंबिया की अदालत के फ़ैसले के ख़िलाफ़ दायर याचिका की सुनवाई से इनकार कर दिया था ।
इसके बाद बंदियों के वकीलों की ओर से सुप्रीम कोर्ट से अनुरोध किया था कि बंदियों की याचिका पर विचार न करना उनके अधिकारों का हनन होगा। और इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने याचिका स्वीकार कर ली है ।
संभावना है कि इस याचिका पर सुनवाई अक्तूबर में शुरु होगी ।
उल्लेखनीय है कि अमरीका के सैन्य वकील भी ग्वांतानामो बे की विशेष सैन्य अदालत की आलोचना की जाती रही है। उनका मानना है कि ये अदालत बंदियों को सज़ा देने के लिए अक्षम हैं ।
लेकिन बुश प्रशासन के लोग ग्वांतानामो बे पर अपने रुख़ का बचाव करते हैं ।
Saturday, June 30, 2007
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