लेकिन अमरीका ने उन रिपोर्टों पर कोई टिप्पणी नहीं की जिनमें ये कहा जा रहा है कि अमरीका चाहता है कि आने वाले चुनाव से पहले मुशर्रफ़ और बेनज़ीर हाथ मिला लें।
अक्सर कहा जाता है कि पाकिस्तान को तीन ताकतें चलाती हैं- अल्लाह, आर्मी और अमरीका।
इस बार ये सवाल उठाया जा रहा है कि क्या अमरीका की मध्यस्थता पर ही पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी (पीपीपी) की नेता बेनज़ीर भुट्टो मुशर्रफ़ सरकार के साथ हाथ मिलाने के लिए आगे बढ़ी है।
वॉशिंगटन से बीबीसी संवाददाता जोनाथन बील कहते हैं कि जब ये सीधा सवाल पत्रकारों ने अमरीकी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता शॉन मेकॉर्मैक से पूछा तो वो इसे टाल गए।
लेकिन अमरीकी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने इतना माना कि अमरीका पाकिस्तान में सभी महत्वपूर्ण राजनीतिक दलों से बातचीत कर रहा है।
उनका कहना था,'' हमारी ये कोशिश है कि हम पाकिस्तान में उदारवादियों के हाथ मज़बूत करें। हम ये चाहते हैं कि वो सब मिलकर उदारवादी केंद्र को इतना मज़बूत बना सकें कि वो चरमपंथियों का मुक़ाबला कर सके।''
पिछले हफ़्ते अमरीकी विदेश मंत्री कोंडोलीज़ा राइस ने फ़ोन कर राष्ट्रपति मुशर्रफ़ से बात की थी और कहा कि वो यथासंभव देश में आपातकाल लागू न करें।
अमरीका की सलाह
अमरीका के प्रतिष्ठित अख़बार न्यूयॉर्क टाइम्स ने लिखा है कि उसी समय कोंडोलीज़ा राइस ने ये बात भी की थी कि पूर्व प्रधानमंत्री बेनज़ीर भुट्टो के साथ मुशर्रफ़ कैसे आगे बढ़ सकते हैं।
इतना ही नहीं न्यूयॉर्क टाइम्स ने ये भी लिखा है कि वरिष्ठ अमरीकी कूटनीतिज्ञ बेनज़ीर भुट्टो से भी लगातार बातचीत कर रहे हैं.
ऐसे में पाकिस्तान के सूचना उपमंत्री तारिक़ अज़ीम ख़ान ने कहा है कि उन्हें अपेक्षा है कि पाकिस्तान के दोस्त पाकिस्तान के अंदरूनी मामलों में हस्तक्षेप नहीं करेंगे। ज़ाहिर है उनका इशारा अमरीका की ओर था।
हालांकि अमरीका इस आलोचना से बचना चाहता है, तो फिर वो इतनी जद्दोजहद क्यों कर रहा है।
बीबीसी संवाददाता जोनाथन बील का कहना है कि दरअसल अमरीका पाकिस्तान के घटनाक्रम को लेकर चिंतित है।
अगर आने वाले चुनावों में राष्ट्रपति मुशर्रफ़ को कोई बड़ा झटका लगता है तो वो बुश प्रशासन को भी एक ज़बर्दस्त झटका होगा।
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