पाकिस्तान के स्वात में चरमपंथियों ने बंधक बनाए गए 48 पाकिस्तानी सैनिकों को शुक्रवार को रिहा कर दिया लेकिन दावा किया है कि सौ से अधिक सैनिक अभी भी बंधक हैं।
इस बीच स्थानीय जिरगा ने चरमपंथियों के साथ संघर्षविराम के लिए बातचीत की कोशिशें शुरु की हैं। चरमपंथियों ने इस बातचीत के लिए कुछ शर्तें रखीं हैं।
इस बीच स्वात में कई जगह से छिटपुट संघर्ष और गोलीबारी की ख़बरें मिली हैं।
उल्लेखनीय है कि स्वात घाटी में पिछले कुछ दिनों से पाकिस्तानी सुरक्षा बलों और चमरपंथियों के बीच भीषण संघर्ष चल रहा है।
संघर्षविराम की कोशिशें
बुधवार को चरमपंथियों ने 48 बंधक सैनिकों को मीडिया के सामने पेश किया।
जवानों के सामने कोई क़ौमी उद्देश्य नहीं है और वे सिर्फ़ अमरीका के लिए लड़ रहे हैं। किसी भी फ़ौज के लिए अमरीका को ख़ुश करने के लिए या उसकी धमकी के चलते लंबे समय तक लड़ना संभव नहीं है
जनरल हमीद गुल, पूर्व प्रमुख आईएसआई
लेकिन चरमपंथियों ने दावा किया है कि उनके पास अभी भी कोई सौ सैनिक बंधक हैं।
चरमपंथी गुट के प्रवक्ता मज़ीद ने बीबीसी के संवाददाता रिफ़तुल्ला औरकज़ई से हुई बातचीत में बताया कि इनमें से 40 सैनिकों को एक अस्पताल से बंधक बनाया गया जबकि 20 को पुलिस स्टेशन से।
उधर स्वात के क़बायली जिरगा ने संघर्षविराम के लिए चरमपंथियों के साथ बातचीत की पहल की है।
बीबीसी संवाददाता का कहना है कि मौलाना फ़ज़लुल्लाह और जिरगा के नेताओं के बीच किसी अज्ञात स्थान पर मुलाक़ात हुई है।
उनका कहना है कि मौलाना फ़ज़लुल्लाह ने संघर्षविराम के लिए कुछ शर्तें रखी हैं। इसमें सेना को इलाक़े से हटाना और उनके ख़िलाफ़ दर्ज सभी मामलों को वापस लेना शामिल है।
हालांकि ये शर्तें अधिकारिक रुप से घोषित नहीं की गई हैं और अभी इस पर सरकार की ओर से कोई प्रतिक्रिया नहीं आई है।
सेना का मनोबल
पाकिस्तानी सैनिक
पाकिस्तानी सैनिकों के मनोबल को लेकर सवाल उठने लगे हैं
बीबीसी के संवाददाता रिफ़तुल्ला औरकज़ई ने बुधवार को रिहा हुए कुछ सैनिकों से बात भी की।
इन सैनिकों का कहना है कि अब वे 'अपने मुसलमान भाइयों से नहीं लड़ेंगे जो शरीयत के लिए संघर्ष कर रहे हैं'।
हालांकि इससे पहले भी यह सवाल उठता रहा है कि सैनिक इतनी आसानी से बंधक कैसे बनाए जा रहे हैं और चरमपंथियों के ख़िलाफ़ लड़ाई लंबी क्यों खिंच रही है।
लेकिन सैनिकों के इस बयान से प्रतीत होता है कि सेना का मनोबल कम हो रहा है।
पाकिस्तान ख़ुफ़िया एजेंसी आईएसआई के पूर्व प्रमुख जनरल हमीद गुल ने माना कि सैनिकों में लड़ने का जज़्बा कम हो रहा है। बीबीसी से हुई बातचीत में उन्होंने कहा, "सैनिक अब नहीं चाहते कि वे अपने ही लोगों के ख़िलाफ़ लड़ें।"
उनका कहना है, "जवानों के सामने कोई क़ौमी उद्देश्य नहीं है और वे सिर्फ़ अमरीका के लिए लड़ रहे हैं। किसी भी फ़ौज के लिए अमरीका को ख़ुश करने के लिए या उसकी धमकी के चलते लंबे समय तक लड़ना संभव नहीं है।"
मनोबल का उदाहरण देते हुए उन्होंने कारगिल युद्ध का उदाहरण दिया कि थोड़े से पाकिस्तानी सैनिकों ने पूरी भारतीय सेना को रोक लिया था।
हमीद गुल ने सलाह दी कि सेना को राजनीति से अलग होकर काम करना चाहिए।
Saturday, November 3, 2007
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