भारत के वित्तमंत्री पी चिदंबरम शुक्रवार को लोकसभा में वर्ष 2008-09 का बजट पेश करेंगे।
यह बजट यूपीए सरकार का अंतिम बजट होगा और इसलिए माना जा रहा है कि इस बजट में भी चुनाव की आहट सुनाई देगी और मतदाताओं को लुभाने की कोशिश दिखाई देगी।
गुरुवार को पेश आर्थिक सर्वेक्षण में देश में अर्थव्यवस्था की जो तस्वीर उभर कर सामने आई है उससे लगता है कि वित्तमंत्री के लिए बजट में संतुलन बनाए रखने की ख़ासी चुनौती होगी।
एक ओर उन्हें देश के आर्थिक विकास दर की चिंता करनी होगी और दूसरी ओर महंगाई की शिकायत कर रहे लोगों और आत्महत्या को मजबूर हो रहे किसानों को राहत पहुँचाने की कोशिश करनी होगी।
संसद में सातवीं बार बजट पेश करने जा रहे वित्तमंत्री चिदंबरम से व्यक्तिगत टैक्स देने वालों को भी रियायत की उम्मीद है और कॉर्पोरेट टैक्स देने वालों को भी।
ग्रामीण क्षेत्रों में रोज़गार की आस लगाए लोगों को भी आस है तो छठें वेतन आयोग का इंतज़ार कर रहे सरकारी कर्मचारी भी बजट पर नज़र लगाए बैठे हैं।
चुनौतियाँ
गुरुवार को संसद में पेश किए गए आर्थिक सर्वेक्षण में कहा गया है कि पिछली तिमाही में विकास दर इससे पहले के दो वर्षों की तुलना में सबसे कम रहा है।
आम लोगों की ज़रूरतों के सामान के दाम बढ़ने पर इसमें चिंता जताई गई है और अगले कुछ समय में महँगाई दर और बढ़ने की आशंका भी जताई गई है। सरकार ने ये भी स्वीकार किया है कि महँगाई बढ़ने से आम आदमी पर बोझ बढ़ रहा है।
इसके अलावा आर्थिक सर्वेक्षण में विकास दर 8.7 फ़ीसदी रहने की संभावना जताई गई है जो यूपीए सरकार के नौ फ़ीसदी के निर्धारित लक्ष्य से कम है।
एक ओर बढ़ते ब्याज़ दरों के चलते उपभोक्ताओं ने बाज़ार में खर्च में कमी कर रखी है तो दूसरी ओर रुपए की मज़बूती के चलते आईटी उद्योग की कमर टूट रही है और निर्यात पर ख़ासा असर पड़ा है।
हालांकि ख़बरें हैं कि किसानों की हालत को लेकर सरकार कोई बड़ा पैकेज देने जा रही है लेकिन बजट के दो दिनों पहले राजनीति तेज़ हो गई है और यूपीए सरकार को बाहर से समर्थन दे वामपंथी किसानों के मुद्दे पर विपक्षियों की रैली में जा खड़े हुए।
एक ओर सीएजी की रिपोर्ट कह रही है कि ग्रामीण रोज़गार गारंटी क़ानून के तहत चल रहा कार्यक्रम ठीक नहीं चल रहा है और दूसरी ओर कांग्रेस के भीतर से इसे पूरे देश में लागू करने का दबाव है।
ऐसी चुनौतियों से निपटने के लिए हॉर्वर्ड में पढ़े वित्तमंत्री पी चिदंबरम अगर आर्थिक क़दम उठाना भी चाहेंगे तो राजनीति उन्हें ऐसा करने से रोकती रहेगी क्योंकि यह चर्चा पहले से ही चल रही है कि यह साल चुनाव का साल हो सकता है।
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