Tuesday, July 24, 2007

इराक़ पर ईरान-अमरीका के बीच फिर वार्ता

अमरीका और ईरान के वरिष्ठ अधिकारी इराक़ में सुरक्षा की स्थिति पर नए सिरे से बातचीत करने जा रहे हैं।

दोनों देशों के बीच 27 सालों में यह दूसरी सीधी चर्चा है।

इससे पहले 28 मई को दोनों देशों के बीच पहली बातचीत हुई थी और यह दूसरी बैठक उसी बात को आगे बढ़ाने के लिए हो रही है।

इराक़ में अमरीकी राजदूत रायन क्रोकर और ईरानी राजदूत हसन काज़मी क़ोमी बग़दाद में मिलने जा रहे हैं।

एक ओर अमरीका आरोप लगाता है कि ईरान उन लोगों को सहायता उपलब्ध करवा रहा है जो इराक़ में अमरीकी और ब्रितानी फ़ौजों पर हमले कर रहे हैं और दूसरी ओर ईरान का आरोप है कि इराक़ की समस्याओं के लिए अमरीकी फ़ौजों की वहाँ उपस्थिति है।

उल्लेखनीय है कि विद्रोह और जातीय हिंसा के कारण इराक़ में हर महीने सैकड़ों लोगों की मौतें हो रही हैं।

आरोप-प्रत्यारोप

सोमवार को इराक़ी राष्ट्रपति जलाल तालाबानी ने दोनों राजदूतों से अलग-अलग मुलाक़ात की थी और उनसे अनुरोध किया था कि इराक़ में सुरक्षा की स्थिति सुधारने के लिए दोनों मिलकर काम करें।

हालांकि इस बातचीत से पहले तक दोनों देश इराक़ की स्थिति के लिए एक-दूसरे को दोषी ठहरा रहे हैं।

अमरीकी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता स्याँ मैककर्मक ने कहा है कि मई में हुई बातचीत के बाद से ईरान ने इराक़ में कोई क़दम नहीं उठाए हैं।

मैककर्मक का कहना था कि अमरीकी ख़ुफ़िया रिपोर्ट बताती हैं कि ईरान अभी भी जातीय हिंसा फैलाने में लगा हुआ है और वह लड़ाकों और आत्मघाती दस्तों को 'सहायता उपलब्ध करवा रहा है।'

अमरीका का कहना है कि दो सौ से अधिक अमरीकी सैनिक ऐसे बमों से मारे गए हैं जो या तो ईरान में बने थे या फिर ईरान की सहायता से बनाए गए थे।

अमरीकी प्रवक्ता ने कहा, "हम उनसे कहने जा रहे हैं कि इराक़ में रणनीतिक स्थिरता के लिए वे अपनी कथनी और करनी का फ़र्क दूर करें।"

अमरीका ने यह भी कहा है कि उसका मानना है कि बग़दाद में दो महीने पूर्व ब्रितानी नागरिकों को अगुवा करने के पीछे भी ईरान का हाथ था।

दूसरी ओर ईरान ने कहा है कि जनवरी में इराक़ में अमरीकी फ़ौजों द्वारा बंदी बनाए गए पाँच ईरानी नागरिकों को रिहा किया जाना चाहिए।

अमरीका का कहना है कि ये पाँचों क़ुर्द फ़ौज का हिस्सा हैं। जबकि ईरान का कहना है कि वे पाँचों राजनयिक हैं।

बीबीसी के इराक़ संवाददाता निकोलस विचेल का कहना है कि इस तरह के सभी विवादों और मतभेदों के बावजूद ईरान और अमरीका दोनों नहीं चाहते कि इराक़ में स्थिति इसी तरह बनी रहे।

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