Friday, October 26, 2007

प्रकृति को नुक़सान का जीवन पर असर

संयुक्त राष्ट्र की एक अहम रिपोर्ट में कहा गया है कि प्रकृति को लगातार नष्ट किए जाने के कारण लोगों के स्वास्थ्य और संपत्ति पर असर हो रहा है।

'ग्लोबल इनवायरमेंट आउटलुक' में कहा गया है कि ज़्यादातर प्रवृत्तियाँ ग़लत दिशा में जा रही हैं।

पर्यावरण को होने वाले नुक़सान के लिए मुख्य रुप से कृषि भूमि को हो रही क्षति, जंगलों का कम होना, प्रदूषण, अत्यधिक मछली मारने और साफ़ पानी की कमी को दोषी ठहराया गया है।

संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट में कहा गया है कि इन प्रवृत्तियों को उलटने के लिए आवश्यक इच्छाशक्ति की ज़बरदस्त कमी है।

संयुक्त राष्ट्र की पर्यावरण की संस्था (यूनेप) के कार्यकारी निदेशक एचिम स्टेनर ने कहा, "ये समस्याएँ लगातार बनी हुई हैं और इनको सुलझाया नहीं जा सका है।"

उन्होंने कहा, "महासागरों में आक्सीजन रहित क्षेत्रों के बढ़ते जाने से लेकर पर्यावरण को लगातार हो रहे नुक़सान तक पुरानी समस्याएँ बनी हुई हैं और नई खड़ी होती जा रही हैं।"

पर्यावरण के नुक़सान से जो क्षति हो रही है वह हाल के दशक के मानव समाज की कई उपलब्धियों को छोटा बना रही है

बान की मून, महासचिव, संयुक्त राष्ट्र

यूनेप ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि समस्याओं का हल नहीं निकाले जाने से विकासशील देशों में लाखों लोगों का जीवन ख़तरे में पड़ गया है।

रिपोर्ट में कहा गया है कि मछलियों की स्थिति ख़राब हो गई है, कृषि योग्य भूमि लगातार कम हो रही है (ख़ासकर अफ़्रीका में), लोगों को पर्याप्त पीने का पानी नहीं मिल रहा है और ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन बढ़ता जा रहा है।

इस रिपोर्ट की भूमिका में संयुक्त राष्ट्र के महासचिव बान की मून ने लिखा है, "पर्यावरण के नुक़सान से जो क्षति हो रही है वह हाल के दशक के मानव समाज की कई उपलब्धियों को छोटा बना रही है।"

उन्होंने कहा है, "यह ग़रीबी के ख़िलाफ़ लड़ी जा रही लड़ाई के महत्व को घटा रही है और इससे विश्वशांति और सुरक्षा पर भी असर हो सकता है।"

जियो-4 नाम की इस रिपोर्ट में कुछ अच्छे क़दमों की ओर भी इशारा किया गया है इसमें अमेज़न के जंगलों की कटाई में कमी, पश्चिमी यूरोप में स्वच्छ हवा और ओज़ोन की परत को नुक़सान से बचाने के लिए होने वाले वैश्विक समझौतों का ज़िक्र किया गया है।

लेकिन कुल मिलाकर वैश्विक प्रवृत्तियों को लेकर निराशा ही जताई गई है।

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