अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष (आईएमएफ़) और संयुक्त राष्ट्र ने इराक़ के आर्थिक और राजनीतिक विकास की तारीफ़ की है।
आईएमएफ़ के मध्यपूर्व और मध्य एशिया विभाग के निदेशक मोहसिन ख़ान का कहना है कि अगले साल इराक़ के विकास में महत्वपूर्ण तेज़ी दिख सकती है।
दूसरी ओर इराक़ में संयुक्त राष्ट्र के दूत स्टैफ़न डेमिस्टूरा ने कहा है कि वे इराक़ में चल रहे राजनीतिक चर्चाओं से उत्साहित हैं और इसके लिए सरकार को बधाई देना चाहते हैं।
दो अहम अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं की ये टिप्पणियाँ संयोगवश ऐसे समय पर आई हैं जब इराक़ के पिछले कुछ सप्ताह अपेक्षाकृत अच्छे गुज़रे हैं।
पिछले कुछ हफ़्तों में इराक़ में हिंसा की घटनाओं में काफ़ी कमी दिख रही है।
अर्थव्यवस्था
आईएमएफ़ ने इराक़ की अर्थव्यवस्था की एक चमकदार तस्वीर पेश की है।
संस्था का कहना है कि उसे उम्मीद है कि इस साल इराक़ के आर्थिक विकास की दर सात प्रतिशत तक होगी और यही दर अगले साल भी बनी रहेगी।
आईएमएफ़ ने कहा है कि तेल के निर्यात से भी तेज़ी आने जा रही है और यह दो लाख बैरल प्रतिदिन तक पहुँच सकता है।
इससे इराक़ को होने वाली आय में भी बढ़ोत्तरी होगी।
लेकिन इसके साथ ही आईएमएफ़ ने स्पष्ट किया है कि इस विकास के बावजूद इराक़ को आर्थिक सहायता की ज़रुरत पड़ती रहेगी, ख़ासकर सुरक्षा के मामले में।
बीबीसी संवाददाता का कहना है कि अमरीकी सैनिकों की संख्या बढ़ने के बाद से तेल ठिकानों पर चरमपंथियों के हमले कम हुए हैं।
लेकिन अभी भी तेल से होने वाली आय के वितरण के क़ानून बनाने की बाधा खड़ी हुई है।
राजनीतिक चर्चाएँ
अर्थव्यवस्था के तेज़ी से बढ़ने की ख़बरों के बीच इराक़ में संयुक्त राष्ट्र के दूत ने राजनीतिक स्थितियों पर भी उत्साहवर्धक टिप्पणियाँ की हैं।
सद्दाम हुसैन
सद्दाम हुसैन की पार्टी के पुराने सदस्यों को नौकरियाँ लौटाई जा रही हैं
शिया और सुन्नियों के बीच चल रही चर्चा को उन्होंने उत्साहजनक बताते हुए कहा है कि इस साल की शुरुआत से उनका दृष्टिकोण लगातार बदला है।
उन्होंने 2008 को इराक़ के लिए महत्वपूर्ण वर्ष बताया है।
पिछले शनिवार को बने नए क़ानून को परिदृष्य बदलने वाला बताया है। इस क़ानून के तहत सद्दाम हुसैन की बाथ पार्टी के पुराने सदस्यों की नौकरी बहाल करने का फ़ैसला किया गया है।
अमरीकी हमले के बाद से उन्हें नौकरियों से हटा दिया गया था और बाथ पार्टी के लोगों को नौकरी पाने का हक़ नहीं था।
इस फ़ैसले के बाद से दोनों गुटों के बीच चल रही हिंसा में कमी देखी जा रही है।
लेकिन राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि इस बदलाव का दारोमदार अगले छह से बारह महीनों में होने वाली राजनीतिक सहमतियों में आने वाली तेज़ी पर भी बहुत कुछ निर्भर करेगा।
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