विदेश मंत्री के रूप में पहली बार अमरीका गए प्रणव मुखर्जी ने सोमवार को राष्ट्रपति जॉर्ज बुश से मुलाक़ात की।
समाचार एजेंसियों का कहना है कि मुलाक़ात के दौरान परमाणु समझौते का मुद्दा उठा और द्विपक्षीय संबंधों पर भी चर्चा हुई।
लेकिन विदेश मंत्री प्रणव मुखर्जी इस मुलाक़ात का विस्तार से विवरण मंगलवार को एक संवाददाता सम्मेलन में देंगे।
राष्ट्रपति बुश और प्रणब मुखर्जी की मुलाक़ात 35 मिनट तक चली।
बातचीत के दौरान विदेश मंत्री प्रणव मुखर्जी के साथ अमरीका में भारतीय दूत रोनेन सेन और विदेश सचिव शिवशंकर मेनन भी मौजूद थे।
जबकि राष्ट्रपति बुश के साथ विदेश मंत्री कोंडोलीज़ा राइस और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार स्टीफ़ेन हैडली भी थे।
राष्ट्रपति बुश से मुलाक़ात से पहले प्रणव मुखर्जी ने विदेश मंत्री कोडोंलीज़ा राइस से भी मुलाक़ात की थी।
'राजनीतिक समस्या'
कोंडोलीज़ा राइस के साथ मुलाक़ात के बाद विदेश मंत्री प्रणव मुखर्जी ने कहा कि दोनों देशों के बीच परमाणु समझौते को लेकर कुछ 'राजनीतिक समस्या' है।
प्रणव मुखर्जी और कोंडोलीज़ा राइस
प्रणव मुखर्जी ने कहा कि समझौते को लेकर कुछ समस्या है
दोनों नेताओं की मुलाक़ात 30 मिनट तक चली। मुलाक़ात के बाद प्रणव मुखर्जी ने पत्रकारों को बताया कि दोनों देश परमाणु समझौते पर काम करना जारी रखेंगे।
उन्होंने कहा, "हम इस ऐतिहासिक परमाणु समझौते को लागू करना चाहते हैं। लेकिन इसे लेकर कुछ राजनीतिक समस्या है। इस समय हम इस समस्या को सुलझाने की कोशिश में लगे हैं।"
विदेश मंत्री के रूप में पहली बार अमरीका गए प्रणव मुखर्जी ने कहा कि केंद्र सरकार इस मुद्दे पर कई राजनीतिक पार्टियों के साथ विचार-विमर्श कर रही है।
कोशिश
दूसरी ओर परमाणु समझौते को आगे ले जाने की इच्छा व्यक्त करते हुए अमरीकी विदेश मंत्री कोंडोलीज़ा राइस ने कहा, "यह ऐतिहासिक समझौता है, जो दोनों देशों के लिए अच्छा है। हम इस समझौते पर काम करना जारी रखेंगे।"
समझौते में समस्या
हम इस ऐतिहासिक परमाणु समझौते को लागू करना चाहते हैं. लेकिन इसे लेकर कुछ राजनीतिक समस्या है. इस समय हम इस समस्या को सुलझाने की कोशिश में लगे हैं
प्रणव मुखर्जी
अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (आईएईए) के साथ परमाणु ठिकाने की सुरक्षा के मुद्दे पर बातचीत के बारे में प्रणब मुखर्जी ने कहा कि विचार-विमर्श ख़त्म हो चुका है और अब आईएईए के बोर्ड ऑफ़ गवर्नर इसे मंज़ूरी देंगे।
परमाणु सप्लायर ग्रुप (एनएसजी) के साथ परमाणु ईंधन के व्यापार के लिए आईएईए के साथ समझौता ज़रूरी होता है।
भारत में सरकार को बाहर से समर्थन दे रही वामपंथी पार्टियाँ मौजूदा स्वरूप में परमाणु समझौते का विरोध कर रही हैं। इन दलों ने धमकी दी है कि अगर सरकार ने समझौते को लागू करने की दिशा में पहल की, तो वे अपना समर्थन वापस ले लेंगे।
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