मानवाधिकार संगठन एमनेस्टी इंटरनेशनल का कहना है कि चीनी प्रशासन ने दुनिया की नज़र में अपनी छवि स्थिर और शांतिपूर्ण देश की प्रस्तुत करने की कोशिश में विभिन्न गतिविधियों का मुँह बंद करने की कोशिश की है।
एमनेस्टी का कहना है कि तिब्बत की कार्रवाई के बाद यदि विदेशी नेताओं और ओलंपिक समिति के सदस्यों ने चीन के मानवाधिकार उल्लंघन की बात नहीं की, तो इसमें उनकी सहमति नज़र आएगी।
बीजिंग से पत्रकार सैबल दास का कहना है कि चीन पर छवि को लेकर भारी दबाव है।
वो अपनी ‘अत्याचारी’ की छवि पेश नहीं करना चाहता है क्योंकि इससे बहुत से पश्चिमी देशों के एथलीट और नेता ओलंपिक खेलों के दौरान नहीं आएँगे।
इसके पहले चीन ने कहा था कि ओलंपिक खेलों में बाधा डालने के लिए तिब्बती आत्मघाती हमला कर सकते हैं।
हालांकि धर्मशाला स्थित निर्वासित तिब्बती सरकार ने बीजिंग के इन आरोपों का खंडन किया है।
चीन के नागरिक सुरक्षा मंत्रालय ने मंगलवार को दावा किया कि ल्हासा और तिब्बत के अन्य हिस्सों में हिंसक प्रदर्शन के बाद अब तिब्बती आत्मघाती हमले की साजिश रच रहे हैं।
भारत की सलाह
इधर भारत के विदेश मंत्री प्रणव मुखर्जी ने भारत में रह रहे निर्वासित शीर्ष तिब्बती धर्मगुरू दलाई लामा को आगाह किया है कि वे ऐसा कोई काम न करें जिससे भारत और चीन के आपसी रिश्तों पर असर पड़े।
यदि विदेशी नेताओं और ओलंपिक समिति के सदस्यों ने चीन के मानवाधिकार उल्लंघन की बात नहीं की, तो इसमें उनकी सहमति नज़र आएगी
एमनेस्टी इंटरनेशनल
प्रणव मुखर्जी ने कहा कि दलाई लामा हमेशा की तरह भारत में सम्मान से रह सकते हैं लेकिन राजनीतिक गतिविधियों से उन्हें दूर रहना चाहिए।
विदेश मंत्री का यह बयान ऐसे समय पर आया है जबकि भारत में लगातार चीन विरोधी प्रदर्शन हो रहे हैं।
एक टीवी चैनल को दिए गए इंटरव्यू में प्रणव मुखर्जी ने कहा, "भारत उनका मेज़बान बना रहेगा लेकिन अपने भारत प्रवास के दौरान उन्हें किसी राजनीतिक गतिविधि में हिस्सा नहीं लेना चाहिए और कुछ भी ऐसा नहीं करना चाहिए जिससे कि भारत और चीन के आपसी संबंधों पर बुरा असर हो।"
भारत के लिए यह एक कठिन चुनौती है क्योंकि वह तिब्बत के शीर्षस्थ नेता और उनके सहयोगियों को अपने यहाँ शरण देता है लेकिन साथ ही चीन से भी अपने रिश्ते ख़राब नहीं करना चाहता।
Wednesday, April 2, 2008
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