Thursday, May 8, 2008

'तूफ़ान में एक लाख से ज़्यादा मारे गए'

बर्मा यानी म्याँमार में अमरीकी राजनयिकों का कहना है कि तूफ़ान से मारे जाने वालों की संख्या एक लाख से ज़्यादा हो सकती है।

दूसरी ओर संयुक्त राष्ट्र ने राहत पर चिंता जताते हुए कहा है कि सहायता लोगों तक समय पर नहीं पहुँच पा रही है।

बर्मा में इस शनिवार को लगभग 200 किलोमीटर प्रतिघंटा की रफ़्तार से समुद्री तूफ़ान नरगिस आया था जिसने इरावॉडी नदी के मुहाने से जुड़े इलाक़े में भारी तबाही मचाई थी।

सरकार का कहना है कि तूफ़ान से 22 हज़ार से ज़्यादा लोग मारे गए हैं और 41 हज़ार से ज़्यादा लोग लापता हैं।

बर्मा में अमरीका के दूतावास की प्रमुख शारी विलारोसा का कहना है कि प्रभावित इलाक़ों में 95 प्रतिशत इमारतों को नुकसान पहुँचा है और स्थिति बेहद ख़राब है।

संयुक्त राष्ट्र की चिंता

संयुक्त राष्ट्र के महासचिव बान की मून ने कहा है कि बर्मा को हर प्रकार की सहायता देश में आने देना चाहिए। लेकिन जानकार कहते हैं कि बर्मा को ये बात पसंद नहीं है कि महीनों तक विदेशी और ख़ासकर अमरीकी उसके इलाक़े में काम करें क्योंकि प्रभावित क्षेत्रों में उसके और चीन के कुछ सैनिक अड्डे भी हैं।


तूफान से प्रभावित लोग
तूफ़ान प्रभावी क्षेत्रों में अभी भी कई वस्तुओं की कमी है

इस बीच, भारत और थायलैंड और कुछ सहायता एजेंसियों की मदद बर्मा तक पहुँचने लगी है लेकिन ये आपदा जितनी बड़ी है उसके मुकाबले सहायता बहुत कम है।

बर्मा के सैन्य शासन ने तूफ़ान प्रभावित लोगों की मदद के लिए संयुक्त राष्ट्र को राहत सामग्री लिए एक विमान को आने की अनुमति दी है।

इस विमान में करीब 25 टन राहत सामग्री है। बर्मा के पड़ोसी और सहयोगी देशों से भी राहत सामग्री आना शुरू हो गई है।

हालांकि ये आशंका अभी भी जताई जा रही है कि बाहरी देशों को बर्मा आने की अनुमति मिलने में हो रही देरी से राहत कार्यों में बाधा आ रही है।

बीबीसी संवाददाता पॉल डानाहर का कहना है कि 1989 में लोकतंत्र समर्थक प्रदर्शनों के बाद से ये बर्मा के सैन्य शासकों के लिए ये सबसे बड़ी चुनौती है।

संयुक्त राष्ट्र आपदा राहत एजेंसी (ओसीएचए) के प्रवक्ता रिचर्ड हॉरसी के मुताबिक सरकार ने बर्मा के विदेश मंत्री को नियुक्त किया है कि वो राहत एजेंसियों के वीज़ा आवेदन पत्रों का कामकाज देखें।

संयुक्त राष्ट्र के विश्व खाद्य कार्यक्रम ने बर्मा के शहर रंगून में खाने-पीने की सामग्री बाँटनी शुरु कर दी है। भारत ने भी दो जहाज़ भेजे हैं।

चीन की सरकारी एजेंसी शिन्हुआ के मुताबिक चीन से 66 टन राहत सामग्री बर्मा पहुँच गई है।

निंदा

अमरीका की विदेशमंत्री कॉन्डोलीसा राइस का कहना है कि बर्मा को ज़रूरतमंदों की सहायता के मामले को राजनीतिक मामला नहीं बनाना चाहिए क्योंकि बर्मा इस समय एक मानवीय त्रासदी को झेल रहा है।


तूफ़ान से प्रभावित लोग
तूफ़ान से प्रभावित लाखों लोगों के घर बरबाद हो गए हैं

कॉन्डोलीसा राइस के बाद फ़्राँस ने भी कहा है कि वह काफ़ी सहायता दे सकता है बशर्ते बर्मा सहयोग करे। लेकिन धीमी प्रगति देखकर फ़्राँस के विदेश मंत्री बर्नार्ड कुश्नेर ने तो यहाँ तक कह डाला है कि संयुक्त राष्ट्र में एक प्रस्ताव पारित कर बर्मा सरकार को ज़बर्दस्ती सहायता लेने पर मजबूर किया जाना चाहिए।

संयुक्त राष्ट्र में फ़्राँस के राजदूत ज़ाँ मारी रिपेर कहते हैं, ‘हमें कुछ करना पड़ेगा। अगर हमने तुरंत क़दम नहीं उठाए तो और लोगों की जानें जाएँगी जिन्हें बचाया जा सकता है और एक बार महामारी फैलने लगी तो उसके भयानक परिणाम हो सकते हैं।’

फ़्राँस का इशारा इस ओर है कि तूफ़ान के बाद यहाँ तहाँ इरावॉडी नदी के मुहाने के कई इलाक़ों में शव पड़े हुए हैं, मवेशियों की पानी में डूबकर मरने के कारण फूली हुई लाशें पड़ी हुई हैं और जैसे जैसे पानी हटेगा, महामारी फैलने की आशंका बढ़ने लगेगी।

ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री केविन रुड ने कहा, "राजनीति को भूल जाएँ। सिर्फ़ लोगों तक राहत पहुँचाने की ओर काम करें।"

मानवीय त्रासदी

पुरानी राजधानी रंगून या यंगून के एक निवासी ने बताया कि ‘हमने कई शवों को रंगून में ह्लैंग नदी में तैरते देखा। शव फूले हुए थे, सड़ रहे थे, उनकी तरफ़ देखते तक नहीं बन रहा था। हमने तो नहीं देखा कि किसी ने इस शवों को हटाने की कोशिश की हो।’

कई प्रभावित क्षेत्रों में 95 फ़ीसदी घर टूट चुके हैं, लोग पानी के बीच टूटे-फूटे घरों में या पेड़ों के नीचे रहने को मजबूर हैं, उन्हें खाने को नहीं मिल रहा, पीने को पानी नहीं मिल रहा। कुछ के रिश्तेदार उनके सामने पानी में बह गए तो किसी के घर पर पेड़ गिरने से लोग मारे गए।

मानसिक और शारीरिक रूप से कमज़ोर इन लोगों को महामारी का शिकार बनते देर नहीं लगेगी इसीलिए समय रहते क़दम उठाने की ज़रूरत है।

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