Tuesday, May 27, 2008

गूजर नेता बैंसला के ख़िलाफ़ मामला दर्ज

राजस्थान सरकार ने व्यापक हिंसा और अराजकता के बाद अब गूजर नेता किरोड़ी सिंह बैंसला के विरुद्ध शिकंजा कसने का संकेत दिया है।

भरतपुर पुलिस ने बैंसला के विरुद्ध राज्य के ख़िलाफ़ अपराध करने का मामला दर्ज किया है। इसके साथ ही पुलिस ने भरतपुर ज़िले में 38 गूजरों को गिरफ्तार भी किया है।

भरतपुर के नए पुलिस अधीक्षक रोहित पुरोहित ने बीबीसी को बताया की बैंसला के ख़िलाफ़ विभिन्न धाराओं में मामला दर्ज किया गया है।

पुलिस ने बैंसला को प्राथमिकी में नामजद किया है। भारतीय दंड संहिता की जिन धाराओं में बैंसला के विरुद्ध मामला दर्ज किया गया है, उनमें अगर अरोप साबित हो जाए तो व्यक्ति को आजीवन कारावास तक की सज़ा मिल सकती है।

बैंसला के अलावा पुलिस ने डकैती के मामलों में अभियुक्त जगन गूजर के विरुद्ध भी मामला दर्ज किया है।

कथित दस्यु सरगना जगन गत दिनों गूजरों के विरोध-प्रदर्शन में हथियारों के साथ दिखाई दिया था। उसके साथ उसकी प्रेमिका भी थी।

गृहमंत्री गुलाबचंद कटारिया ने कहा है कि आंदोलन पर आपराधिक तत्त्व हावी हो गए है। मुख्यमंत्री वसुन्धरा राजे ने भी ने रविवार को कहा था कि अपराधों मे लिप्त कई चेहरे इस आंदोलन के मंचों पर देखे गए हैं।

इसके बाद पुलिस हरकत में आई। इस बीच सरकार ने गूजर नेताओं के ख़िलाफ़ हाईकोर्ट में भी एक याचिका दाखिल कर कहा है कि गूजर नेताओं ने अदालत की पाबंदी के बावजूद कानून व्यवस्था बिगाड़ने की कोशिश की है।

सख़्त होती सरकार

मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को पत्र लिखकर कहा है कि गूजर आंदोलन का मुद्दा अब कई राज्यों को प्रभावित कर रहा है इसलिए वो राज्यों के मुख्यमंत्रियों की बैठक बुलाएँ और समाधान निकालें।


मृतक गूजरों के शव
पिछले एक साल के दौरान गूजर आंदोलन में कम से कम 63 लोगों की मौत हो चुकी है

राजस्थान सरकार ने केंद्र से सिफ़ारिश की है कि गूजरों के लिए जनजाति आरक्षण से अलग चार से छह प्रतिशत गैर अधिसूचित कोटे से आरक्षण की व्यवस्था करे। पहले भी सरकार केंद्र से यह आग्रह कर चुकी है।

राजस्थान की ताज़ा स्थित के बारे में राज्य के गृहमंत्री गुलाब चंद कटारिया ने कहा, “राज्य में कमोबेश 34 स्थानों पर गुजरों ने विरोध प्रदर्शन किए, कुछ वाहनों की तोड़-फोड़ की, रास्ते रोके। लोकिन शांति बनी हुई है।”

सरकार का कहना है कि राजस्थान में चल रहे गूजरों के आंदोलन में मरने वालों की संख्या 37 है जबकि 50 लोग घायल है।

पुलिस के मुताबिक घायलों पर पुलिस के हथियारों के अलावा देसी, अवैध हथियोरों से चोट (छर्रें) के निशान है।

उनका कहना है कि लाश को पोस्टमार्टम के लिए इस वजह से नहीं दिया जा रहा है कि ऐसे में इस सच का खुलासा हो जाएगा कि मौत सिर्फ़ पुलिस की गोली से ही नहीं हुई है।

सरकार का कहना है कि इस आंदोलन में आपराधिक तत्वों का हाथ है और वे आंदोलन पर क़ाबिज़ हैं।

राजस्थान में जनजाति का दर्जा देने की माँग को लेकर गूजरों का आंदोलन राज्य के दूसरे हिस्सों में भी फैल गया है।

आंदोलनकारियों ने सोमवार को जगह-जगह रेल और सड़क मार्ग को जाम किया। गूजरों ने सोमवार को उदयपुर-अहमदाबाद और झालावाड़-इंदौर मार्ग को निशाना बनाया।

दिल्ली-मुंबई रेलमार्ग पहले से ही आंदोलन की चपेट में है। रविवार की रात आगरा-बाँदीकुई रेलमार्ग भी बाधित हुआ।

आंदोलन

इस बीच आधिकारिक सूत्रों ने कहा कि शुक्रवार से चल रहे इस आंदोलन के दौरान हिंसा में मारे गए लोगों की संख्या 37 तक पहुँच गई है।

राज्य सरकार ने एक बार फिर कहा है कि वह मसले के समाधान के लिए गूजरों से बातचीत के लिए तैयार है लेकिन गूजर नेता बातचीत को तैयार नहीं दिख रहे हैं।

सरकार चला रही भारतीय जनता पार्टी को कुछ महीने बाद ही विधानसभा चुनावों का सामना करना है इसलिए वह चाहती है कि मामला जितनी जल्दी शांत हो जाए, उतना अच्छा है।

यही वजह है कि सरकार ने कहा है कि किरोड़ी सिंह बैंसला बातचीत के लिए अपना दूत भी भेज सकते हैं।

राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे रविवार को भरतपुर ज़िले के बयाना इलाक़े में हालाज का जायज़ा लेने गई थीं लेकिन बैंसला से उनकी भेंट नहीं हुई।

बयाना के लोगों के मुताबिक मुख्यमंत्री ने कहा था कि अगर बैंसला चाहें तो उनसे मिल सकते हैं।

पिछले साल भी गूजरों ने जनजाति का दर्जा देने की माँग को लेकर उग्र आंदोलन किया था और उस समय भी बड़े पैमाने पर हुई हिंसा में 26 लोगों की मौत हुई थी।

तब राज्य सरकार और गूजर नेताओं के बीच समझौते के बाद आरक्षण की माँग पर विचार के लिए चोपड़ा आयोग का गठन किया गया था।
इस आयोग ने रिपोर्ट पेश की लेकिन उसमें आरक्षण के बारे में स्पष्ट तौर पर कोई सुझाव नहीं था।

अब गूजरों का कहना है कि उन्हें चोपड़ा आयोग से कोई मतलब नहीं है और वे चाहते हैं कि वसुंधरा राजे अपने वादे के मुताबिक कार्यकाल ख़त्म होने से पहले आरक्षण देने की सिफ़ारिश केंद्र से करें।

1 comment:

Unknown said...

यदि कोई आंदोलन हिंसक हो जाता है तो उस के नेताओं के ख़िलाफ़ कार्यवाही होनी ही चाहिए. प्रजातन्त्र में सब को अपनी बात कहने का अधिकार है और उस के लिए अहिंसक और शांतिपूर्ण आंदोलन करने का भी अधिकार है. राष्ट्र संपत्ति नष्ट करना, सड़क और रेल यातायात अवरुद्ध करके राष्ट्र को आर्थिक हानि पहुँचाना, औद्योगिक इकाइयों को जबरन बंद कराने की धमकियां देना, यह सब राष्ट्र के प्रति अपराध हैं. इसको माफ़ नहीं किया जाना चाहिए.