वामपंथियों के समर्थन वापसी के बाद यूपीए पर विश्वासमत हासिल करने के लिए बढ़ते दबावों के बीच प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह गुरुवार की शाम राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल से मिलेंगे।
राष्ट्रपति ने प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को उनसे मुलाक़ात करने के लिए कहा है।
वामदलों ने बुधवार यानी नौ जुलाई को राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल से मिलकर यूपीए सरकार से समर्थन वापसी का औपचारिक पत्र सौंप दिया था।
इसके बाद समाजवादी पार्टी के नेताओं ने भी राष्ट्रपति से मुलाक़ात कर यूपीए को अपना समर्थन जारी रखने का पत्र दिया है।
मनमोहन सिंह जी-8 सम्मेलन में हिस्सा लेने के लिए जापान गए हुए थे और बुधवार देर रात भारत लौटे हैं।
इस बीच भारत सरकार ने परमाणु संयंत्रों की निगरानी संबंधी समझौते का मसौदा अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (आईएईए) को भेज दिया है और इसे भारत सरकार के अनुरोध पर सदस्य देशों के बीच वितरित कर दिया गया है।
सरकार के इस क़दम की भी राजनीतिक हलकों में तीखी प्रतिक्रिया हुई है।
राजनीतिक मसला
अमरीका के साथ असैन्य परमाणु समझौते के मुद्दे पर चल रही इन राजनीतिक गतिविधियों के बीच राष्ट्रपति कार्यालय ने कहा है कि प्रधानमंत्री राष्ट्रपति से मुलाक़ात करें।
राष्ट्रपति बनने के बाद प्रतिभा पाटिल के लिए यह पहला मौक़ा है जब उनके सामने कोई गंभीर राजनीतिक मसला आया हो।
एक ओर वामदलों ने राष्ट्रपति को दिए पत्र के ज़रिए आग्रह किया है कि मनमोहन सिंह सरकार से जल्द से जल्द लोकसभा में बहुमत साबित करने को कहा जाए।
दूसरी ओर विपक्षी गठबंधन एनडीए ने भी यह दबाव बनाए रखा है कि मनमोहन सरकार को संसद में विश्वासमत हासिल करना चाहिए।
यूपीए सरकार के प्रमुख मनमोहन सिंह और उनके दूसरे सिपहसलार यह दावा कर रहे हैं कि सरकार को कोई ख़तरा नहीं है और वे संसद में विश्वासमत हासिल करेंगे।
लेकिन विश्वासमत का अंतिम फ़ैसला राष्ट्रपति को ही लेना है।
संवैधानिक प्रावधान कहते हैं कि यदि राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल सरकार को हासिल समर्थन से संतुष्ट हो जाती हैं कि सरकार के पास बहुमत है तो वे विश्वासप्रस्ताव के दबाव को टाल सकती हैं।
ऐसी सूरत में वामदलों और विपक्षी गठबंधन एनडीए के पास अविश्वास प्रस्ताव का विकल्प रह जाएगा।
लेकिन जैसा कि प्रणव मुखर्जी ने कहा है कि सरकार संसद का विशेष सत्र बुलाकर विश्वासमत हासिल करने के लिए तैयार है, लगता है कि सरकार ख़ुद ही चाहती है कि परमाणु क़रार पर ठोस क़दम बढ़ाने से पहले वह बहुमत साबित कर ले।
अंक गणित
वामपंथी दलों ने अपने 59 सांसदों का समर्थन यूपीए से वापस ले लिया है।
हालांकि 39 सांसदों वाले समाजवादी पार्टी के नेताओं ने दोहराया कि वे कांग्रेस के नेतृत्व वाले यूपीए गठबंधन का समर्थन करते हैं।
लेकिन एक संकट यह है कि व्यावहारिक रुप से इतने सांसद समाजवादी पार्टी के पास नहीं है क्योंकि कम से कम तीन सांसद ऐसे हैं जो समाजवादी पार्टी से नाता तोड़ चुके हैं।
इसके अलावा यह चर्चा चल रही है कि कई सांसद समाजवादी पार्टी से विद्रोह करने को तैयार खड़े हैं।
हालांकि समाजवादी पार्टी के नेता दावा करते हैं कि उनके सभी सांसद यूपीए के समर्थन में मतदान करेंगे।
लेकिन लोकसभा में बहुमत हासिल करने के लिए इसके बाद भी यूपीए को कुछ और सदस्यों की ज़रुरत होगी।
545 सीटों में से दो रिक्त हैं, इस तरह 543 सदस्यों में यूपीए के कांग्रेस, राष्ट्रीय जनता दल, डीएमके, राष्ट्रवादी कांग्रेस, पीएमके, जेएमएम, पीडीपी और चार कम सदस्यों वाले छोटे दलों के 224 सांसद हैं।
समाजवादी पार्टी के 39 सांसदों के समर्थन के साथ यूपीए को कुल 263 सांसदों का समर्थन हासिल हो जाता है।
यदि कांग्रेस को राष्ट्रीय लोकदल (आरएलडी) के तीन, जनता दल (एस) के तीन और तेलंगाना राष्ट्रीय समिति के तीन सांसदों का समर्थन मिल जाता है तो सरकार को 272 सांसदों का समर्थन पा जाएगी और विश्वासमत हासिल कर लेगी।
सरकार को कुछ निर्दलियों से भी आस हो सकती है।
लेकिन अभी यह स्पष्ट नहीं है कि वास्तव में समाजवादी पार्टी के कितने सांसद यूपीए का समर्थन करेंगे और ये तीन दल यूपीए के साथ आ रहे हैं या नहीं।
इसके लिए सरकार को सभी दलों से अलग-अलग चर्चा करनी होगी और राजनीतिक लाभ-हानि का गुणा-गणित लगाना होगा और अंतिम परिणाम तभी दिखेगा जब संसद में विश्वासमत पर मत विभाजन होगा।
राष्ट्रपति ने प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को उनसे मुलाक़ात करने के लिए कहा है।
वामदलों ने बुधवार यानी नौ जुलाई को राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल से मिलकर यूपीए सरकार से समर्थन वापसी का औपचारिक पत्र सौंप दिया था।
इसके बाद समाजवादी पार्टी के नेताओं ने भी राष्ट्रपति से मुलाक़ात कर यूपीए को अपना समर्थन जारी रखने का पत्र दिया है।
मनमोहन सिंह जी-8 सम्मेलन में हिस्सा लेने के लिए जापान गए हुए थे और बुधवार देर रात भारत लौटे हैं।
इस बीच भारत सरकार ने परमाणु संयंत्रों की निगरानी संबंधी समझौते का मसौदा अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (आईएईए) को भेज दिया है और इसे भारत सरकार के अनुरोध पर सदस्य देशों के बीच वितरित कर दिया गया है।
सरकार के इस क़दम की भी राजनीतिक हलकों में तीखी प्रतिक्रिया हुई है।
राजनीतिक मसला
अमरीका के साथ असैन्य परमाणु समझौते के मुद्दे पर चल रही इन राजनीतिक गतिविधियों के बीच राष्ट्रपति कार्यालय ने कहा है कि प्रधानमंत्री राष्ट्रपति से मुलाक़ात करें।
राष्ट्रपति बनने के बाद प्रतिभा पाटिल के लिए यह पहला मौक़ा है जब उनके सामने कोई गंभीर राजनीतिक मसला आया हो।
एक ओर वामदलों ने राष्ट्रपति को दिए पत्र के ज़रिए आग्रह किया है कि मनमोहन सिंह सरकार से जल्द से जल्द लोकसभा में बहुमत साबित करने को कहा जाए।
दूसरी ओर विपक्षी गठबंधन एनडीए ने भी यह दबाव बनाए रखा है कि मनमोहन सरकार को संसद में विश्वासमत हासिल करना चाहिए।
यूपीए सरकार के प्रमुख मनमोहन सिंह और उनके दूसरे सिपहसलार यह दावा कर रहे हैं कि सरकार को कोई ख़तरा नहीं है और वे संसद में विश्वासमत हासिल करेंगे।
लेकिन विश्वासमत का अंतिम फ़ैसला राष्ट्रपति को ही लेना है।
संवैधानिक प्रावधान कहते हैं कि यदि राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल सरकार को हासिल समर्थन से संतुष्ट हो जाती हैं कि सरकार के पास बहुमत है तो वे विश्वासप्रस्ताव के दबाव को टाल सकती हैं।
ऐसी सूरत में वामदलों और विपक्षी गठबंधन एनडीए के पास अविश्वास प्रस्ताव का विकल्प रह जाएगा।
लेकिन जैसा कि प्रणव मुखर्जी ने कहा है कि सरकार संसद का विशेष सत्र बुलाकर विश्वासमत हासिल करने के लिए तैयार है, लगता है कि सरकार ख़ुद ही चाहती है कि परमाणु क़रार पर ठोस क़दम बढ़ाने से पहले वह बहुमत साबित कर ले।
अंक गणित
वामपंथी दलों ने अपने 59 सांसदों का समर्थन यूपीए से वापस ले लिया है।
हालांकि 39 सांसदों वाले समाजवादी पार्टी के नेताओं ने दोहराया कि वे कांग्रेस के नेतृत्व वाले यूपीए गठबंधन का समर्थन करते हैं।
लेकिन एक संकट यह है कि व्यावहारिक रुप से इतने सांसद समाजवादी पार्टी के पास नहीं है क्योंकि कम से कम तीन सांसद ऐसे हैं जो समाजवादी पार्टी से नाता तोड़ चुके हैं।
इसके अलावा यह चर्चा चल रही है कि कई सांसद समाजवादी पार्टी से विद्रोह करने को तैयार खड़े हैं।
हालांकि समाजवादी पार्टी के नेता दावा करते हैं कि उनके सभी सांसद यूपीए के समर्थन में मतदान करेंगे।
लेकिन लोकसभा में बहुमत हासिल करने के लिए इसके बाद भी यूपीए को कुछ और सदस्यों की ज़रुरत होगी।
545 सीटों में से दो रिक्त हैं, इस तरह 543 सदस्यों में यूपीए के कांग्रेस, राष्ट्रीय जनता दल, डीएमके, राष्ट्रवादी कांग्रेस, पीएमके, जेएमएम, पीडीपी और चार कम सदस्यों वाले छोटे दलों के 224 सांसद हैं।
समाजवादी पार्टी के 39 सांसदों के समर्थन के साथ यूपीए को कुल 263 सांसदों का समर्थन हासिल हो जाता है।
यदि कांग्रेस को राष्ट्रीय लोकदल (आरएलडी) के तीन, जनता दल (एस) के तीन और तेलंगाना राष्ट्रीय समिति के तीन सांसदों का समर्थन मिल जाता है तो सरकार को 272 सांसदों का समर्थन पा जाएगी और विश्वासमत हासिल कर लेगी।
सरकार को कुछ निर्दलियों से भी आस हो सकती है।
लेकिन अभी यह स्पष्ट नहीं है कि वास्तव में समाजवादी पार्टी के कितने सांसद यूपीए का समर्थन करेंगे और ये तीन दल यूपीए के साथ आ रहे हैं या नहीं।
इसके लिए सरकार को सभी दलों से अलग-अलग चर्चा करनी होगी और राजनीतिक लाभ-हानि का गुणा-गणित लगाना होगा और अंतिम परिणाम तभी दिखेगा जब संसद में विश्वासमत पर मत विभाजन होगा।
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