हिन्दी अनुवाद:
विजय माल्या भारत सरकार के इस दावे से नाखुश दिखे कि महात्मा गांधी की निजी वस्तुएं उनके जरिये हासिल करने की व्यवस्था सरकार की ओर से ही की गई थी। माल्या ने कहा कि नीलामी में शामिल होना पूरी तरह से उनका निजी फैसला था जो उनके लिए गर्व की बात है।
माल्या ने फ्रांस से फोन पर कहा, 'मेरी सरकार के किसी भी व्यक्ति के साथ किसी भी तरह की कोई बातचीत नहीं हुई। यह मेरा पूरी तरह से निजी फैसला था।'
लंदन के नीलामी घर से वर्ष 2004 में टीपू सुल्तान की तलवार ला चुके माल्या ने कहा कि वह गांधीजी की वस्तुएं दिल्ली ला रहे हैं और वह इन्हें सरकार को तोहफे में देंगे।
पर्यटन मंत्री अंबिका सोनी ने इससे पहले वक्तव्य दिया था कि सरकार माल्या की सेवाओं के जरिए गांधीजी की वस्तुओं को हासिल कर सकी है और माल्या सरकार से संपर्क में थे।
इस वक्तव्य पर प्रतिक्रिया देते हुए माल्या ने कहा, 'अंबिका सोनी जो कह रही हैं मैं उससे अवगत नहीं हूं लेकिन न तो नीलामी से पहले और न ही बाद में सरकार का कोई व्यक्ति मुझसे संपर्क में था।'
जब उनसे यह पूछा गया कि जब सरकार ने उनसे संपर्क नहीं किया था तो फिर उन्होंने उसे राहत देने वाला यह काम क्यों किया तो माल्या ने कहा, 'मैं इसे राहत देने वाला काम नहीं कहूंगा। मैंने वहीं किया जो मुझे करना था।'
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