Monday, July 30, 2007

ऑस्ट्रेलियाई पुलिस का शिकार बना: हनीफ़

बंगलौर लौटने के बाद डॉक्टर मोहम्मद हनीफ़ ने कहा है कि उन्हें ऑस्ट्रेलियाई पुलिस ने अपना 'शिकार बनाया' जिसके कारण उन्हें गहरे मानसिक तनाव से गुजरना पड़ा।


ब्रिटेन के नाकाम हमलों के सिलसिले में ऑस्ट्रेलिया में गिरफ़्तार और फिर रिहा हुए डॉक्टर हनीफ़ रविवार को बंगलौर पहुँच गए। वो 27 दिनों तक ऑस्ट्रेलियाई पुलिस की हिरासत में रहे।
बंगलौर हवाई अड्डे पर उनका भव्य स्वागत किया गया। वो भारतीय समयानुसार रविवार रात लगभग साढ़े नौ बजे बंगलौर हवाई अड्डे पर पहुँचे।
डॉक्टर हनीफ़ ने पत्रकारों से कहा कि वे भारत सरकार, मीडिया और अपने समर्थकों के प्रति आभार व्यक्त करते हैं।
उनका कहना था,'' परिवार के साथ मिलन काफी भावुक लम्हा है और सदमे से गुजरने के बाद लंबे इंतज़ार के बाद घर लौटना सुखद है।''
हनीफ़ ने कहा, ''मैं यहाँ पहुँचकर काफ़ी खुश हूँ। मैं अपनी बेटी को देखकर राहत महसूस कर रहा हूँ।''
ऑस्ट्रेलिया के एक टेलीविज़न चैनल से बातचीत में उन्होंने स्पष्ट तौर पर इनकार किया कि उनके किसी आतंकवादी संगठन से संबंध हैं। साथ ही कहा कि उन्होंने ऐसे किसी संगठन की मदद नहीं की है।


नौकरी की पेशकश

इस बीच कर्नाटक के मुख्यमंत्री एच डी कुमारस्वामी ने कहा कि वो सोमवार को डॉक्टर हनीफ़ से मुलाक़ात कर उनके सामने सरकारी नौकरी की पेशकश करेंगे।
समाचार एजेंसी पीटीआई के अनुसार मुख्यमंत्री का कहना था,'' यह पेशकश हनीफ़ और उनके परिवार से सोमवार को उनके निवास पर मेरी मुलाक़ात के दौरान की जाएगी।''
उन्होंने हनीफ़ की वापसी पर खुशी भी जताई।
हनीफ़ के ख़िलाफ़ ग्लासगो में कार हमले की साज़िश में जुड़ा मामला सबूतों की समीक्षा के बाद रद्द कर दिया गया था।
मुख्य अभियोजन अधिकारी का कहना था कि हनीफ़ के मामले में उनसे ग़लती हुई।


गिरफ़्तारी फिर रिहाई

पिछले महीने ब्रिटेन में हुए नाकाम कार बम धमाकों के सिलसिले में डॉक्टर हनीफ़ को दो जुलाई को ऑस्ट्रेलिया में उस समय गिरफ़्तार किया गया था जब वे भारत जाने की तैयारी कर रहे थे।
उनके मामले को लेकर ऑस्ट्रेलियाई सरकार के रुख़ पर भी सवाल उठे थे।
दरअसल ऑस्ट्रेलियाई अधिकारियों ने आरोप पत्र में कहा था कि डॉक्टर हनीफ़ ने एक ‘आतंकवादी संगठन’ का सहयोग किया।
डॉक्टर हनीफ़ पर आरोप लगा कि उन्होंने अपना सिम कार्ड अपने एक रिश्तेदार को दिया था, जो कार बम धमाके के सिलसिले में एक अभियुक्त है।
वहाँ की एक अदालत ने बाद में उन्हें ज़मानत दे दी थी।
लेकिन ऑस्ट्रेलियाई सरकार ने ज़मानत मिलने के कुछ ही घंटों बाद उनका वीज़ा रद्द कर उन्हें हिरासत में रखने का फ़ैसला किया था। लेकिन बाद में सरकार ने उनके ख़िलाफ़ मामला वापस लेने का निर्णय किया।

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