भारत के पूर्वोत्तर राज्य असम में शुक्रवार देर रात संदिग्ध चरमपंथियों ने 12 हिंदीभाषी लोगों की गोली मार कर हत्या कर दी। इस हफ़्ते हिंदीभाषियों पर हुआ यह दूसरा हमला है। इससे पहले बुधवार की रात कारबी आंगलांग ज़िले में चरमपंथियों ने आठ हिंदी भाषी लोगों की हत्या कर दी थी। ताज़ा हमला भी कारबी आंगलांग ज़िले में ही हुआ है। अधिकारियों के मुताबिक शुक्रवार देर रात 20 से 25 लोगों का हथियारबंद दस्ता बोकाजाम पुलिस थाने के डाला गाँव पहुँचा। इन संदिग्ध चरमपंथियों ने गाँव में रहने वाले हिंदीभाषी लोगों के घरों में पहले आग लगा दी और जब लोग घरों से निकल कर भागने लगे तो उन पर ताबड़तोड़ गोलियाँ चलाई। 12 हिंदीभाषी मौके पर ही मारे गए और 15 गंभीर रूप से घायल हैं जिनमें से कइयों की स्थिति गंभीर है। इसलिए आशंका है कि मरने वालों की संख्या बढ़ सकती है। हमला स्वतंत्रता दिवस से महज कुछ दिनों पहले हुआ है। हर साल संदिग्ध चरमपंथी स्वतंत्रता दिवस से पहले इस तरह के हमले करते हैं। इस माह हिंदीभाषियों पर हुए हमले में 23 लोग मारे जा चुके हैं। इनमें से अधिकतर बिहार और उत्तर प्रदेश से आकर बसे मज़दूर हैं। चरमपंथियों की नई रणनीति पुलिस का कहना है कि दोनों हमलों में यूनाइटेड लिबरेशन फ़्रंट ऑफ़ असम (अल्फ़ा) की सहयोगी चरमपंथी संगठन काबरी नेशनल लिबरेशन फ़्रंट (केएनएलएफ़) का हाथ हो सकता है।
ग़ौर करने वाली बात ये है कि पिछले कुछ समय में उन जगहों पर हिंदीभाषियों को निशाना बनाया गया है जहाँ उनकी संख्या कम है। पहले तिनसुकिया और डिब्रूगढ़ जैसे ज़िलों में हमले होते थे जहाँ हिंदीभाषियों की आबादी अधिक है। लेकिन राज्य सरकार ने इन ज़िलों में सुरक्षा में व्यापक इंतज़ाम किए हैं जिसके कारण चरमपंथियों ने भी रणनीति बदल ली है। अब वे कारबी जैसे पहाड़ी इलाक़ों में हमले कर रहे हैं जहाँ हिंदीभाषियों की छिटपुट संख्या है। पिछले साल सितंबर में अल्फ़ा और सरकार के बीच बातचीत टूट जाने के बाद चरमपंथी हमले तेज़ हुए हैं। उसके बाद से लेकर अब तक लगभग 150 हिंदीभाषी मारे गए हैं। |
Saturday, August 11, 2007
असम में 12 हिंदीभाषियों की हत्या
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