राज्यसभा की कार्यसूची के अनुसार दोपहर बाद इस विषय पर चर्चा होगी।
एक ओर सरकार ने इस समझौते की पड़ताल के लिए वामपंथियों के साथ एक समिति के गठन की घोषणा की है।
दूसरी ओर समझौते पर पहले से सवाल उठा रहे मुख्य विपक्षी दल भारतीय जनता पार्टी और नवगठित तीसरे मोर्चे की नाराज़गी इस समिति के गठन से और भी बढ़ गई है।
भाजपा और तीसरे मोर्चे ने इस सरकार और वामपंथी दलों की समिति के स्थान पर संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) के गठन की माँग तेज़ कर दी है।
इसी माँग को लेकर भाजपा और तीसरे मोर्चे ने बुधवार को संसद के दोनों सदनों में जमकर हंगामा किया और दोनों सदनों की कार्यवाही नहीं चलने दी।
हालांकि यूपीए सरकार की ओर से प्रणव मुखर्जी कह चुके हैं कि जेपीसी के गठन का कोई प्रश्न ही नहीं है। वामपंथी नेता भी इसके लिए राज़ी नहीं हैं।
उल्लेखनीय है कि भारत ने हाल ही में अमरीका के साथ परमाणु समझौते को अंतिम रुप दिया है और अब इसे अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (आईएईए) और परमाणु आपूर्तिकर्ता देशों (एनएसजी) के साथ बात करके आगे बढ़ाना है।
चेतावनी
यूपीए सरकार को बाहर से समर्थन दे रहे वामपंथी दलों ने इस समझौते पर बड़ी शंकाएँ ज़ाहिर करते हुए कहा है कि जब तक उनकी शंकाएँ दूर नहीं हो जातीं सरकार को समझौते पर आगे नहीं बढ़ना चाहिए।
मंगलवार को वामपंथी नेताओं ने अपनी चेतावनी को दोहराते हुए सरकार से एक बार फिर कहा है कि यदि सरकार समिति की रिपोर्ट आए बिना समझौते की दिशा में क़दम बढ़ाती है तो उसे 'परिणाम भुगतने के लिए' तैयार रहना चाहिए।
वामपंथी साफ़ कह चुके हैं कि सरकार को अभी आईएईए के साथ इस विषय पर बातचीत शुरु नहीं करनी चाहिए।
उधर भाजपा का कहना है कि सरकार को इस समझौते की पड़ताल के लिए जेपीसी का गठन करना चाहिए क्योंकि सरकार और वामपंथियों की समिति से बात नहीं बन सकती।
भाजपा, शिवसेना और तीसरे मोर्चे का कहना है कि सरकार का यह क़दम संसद और राष्ट्र का अपमान है।
वामपंथियों के रुख़ और विपक्ष की नाराज़गी के बीच सरकार रास्ता किस तरह निकालेगी यह अभी स्पष्ट नहीं हो पा रहा है और ऐसे में गुरुवार को राज्यसभा में चर्चा किस तरह होगी यह भी साफ़ नहीं है।
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