संयुक्त राष्ट्र का कहना है कि जलवायु परिवर्तन के मुद्दे पर इंडोनेशियाई द्वीप बाली में सोमवार से शुरु हुए सम्मेलन में अमरीका की भूमिका अहम होगी.
इस सम्मेलन में लगभग दो सौ देशों के प्रतिनिधि शामिल हो रहे हैं.
जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र की संस्था के प्रमुख ईवो ड बुए का कहना है कि जलवायु परिवर्तन पर लंबी अवधि के लिए कोई भी रणनीति तैयार करने में अमरीका की अनदेखी करना मूखर्ता होगी.
बाली सम्मेलन में ही यह तय करने की कोशिश की जाएगी कि क्योटो प्रोटोकॉल के बाद किसी समझौते का स्वरूप कैसा होगा.
क्योटो प्रोटोकॉल के तहत निर्धारित समयसीमा वर्ष 2012 में ख़त्म हो रही है.
वर्ष 1997 में हुए क्योटो समझौते में प्रदूषण फैलाने वाली गैसों के उत्सर्जन में कमी करने के लिए विकासशील और विकसित देशों को लक्ष्य दिया गया था लेकिन अमरीका शुरु से ही नकारात्म रवैया अपनाता रहा और इसे मानने से इनकार कर दिया.
हालाँकि अब अमरीका का कहना है कि वो बाली सम्मेलन में खुले दिमाग के साथ शिरकत कर रहा है.
संयुक्त राष्ट्र चिंतित
संयुक्त राष्ट्र की ओर से विभिन्न देशों के पैनल (आईपीसीसी) की ताज़ा रिपोर्ट के मुताबिक जलवायु परिवर्तन का असर पहले की तुलना में तेज़ी से दिखाई दे रहा है.
बाली सम्मेलन में इस बात पर भी चर्चा होगी कि ग़रीब देशों को वैश्विक तापमान में हो रही वृद्धि के असर से बचाने के लिए क्या उपाय किए जाएँ.
इससे पहले संयुक्त राष्ट्र के महासचिव बान की मून ने कहा था कि जलवायु परिवर्तन पर आईपीसीसी की रिपोर्ट में दुनिया भर में बढ़ रहे तापमान की समस्या के समाधान के लिए ठोस उपाय सुझाए गए हैं लेकिन उन पर सख़्ती से अमल किए जाने की ज़रूरत होगी.
उन्होंने कहा था कि बाली में होने वाले जलवायु परिवर्तन सम्मेलन में इस बारे में कोई ठोस नीति बनाए जाने की ज़रूरत है.
आईपीसीसी की रिपोर्ट में कहा गया है कि जलवायु परिवर्तन बहुत ख़तरनाक चुनौती बन चुकी है और अगर इससे नहीं निपटा गया तो इसके ऐसे ख़तरनाक प्रभाव हो सकते हैं जिनसे उबरना असंभव हो सकता है.
इस सम्मेलन में लगभग दो सौ देशों के प्रतिनिधि शामिल हो रहे हैं.
जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र की संस्था के प्रमुख ईवो ड बुए का कहना है कि जलवायु परिवर्तन पर लंबी अवधि के लिए कोई भी रणनीति तैयार करने में अमरीका की अनदेखी करना मूखर्ता होगी.
बाली सम्मेलन में ही यह तय करने की कोशिश की जाएगी कि क्योटो प्रोटोकॉल के बाद किसी समझौते का स्वरूप कैसा होगा.
क्योटो प्रोटोकॉल के तहत निर्धारित समयसीमा वर्ष 2012 में ख़त्म हो रही है.
वर्ष 1997 में हुए क्योटो समझौते में प्रदूषण फैलाने वाली गैसों के उत्सर्जन में कमी करने के लिए विकासशील और विकसित देशों को लक्ष्य दिया गया था लेकिन अमरीका शुरु से ही नकारात्म रवैया अपनाता रहा और इसे मानने से इनकार कर दिया.
हालाँकि अब अमरीका का कहना है कि वो बाली सम्मेलन में खुले दिमाग के साथ शिरकत कर रहा है.
संयुक्त राष्ट्र चिंतित
संयुक्त राष्ट्र की ओर से विभिन्न देशों के पैनल (आईपीसीसी) की ताज़ा रिपोर्ट के मुताबिक जलवायु परिवर्तन का असर पहले की तुलना में तेज़ी से दिखाई दे रहा है.
बाली सम्मेलन में इस बात पर भी चर्चा होगी कि ग़रीब देशों को वैश्विक तापमान में हो रही वृद्धि के असर से बचाने के लिए क्या उपाय किए जाएँ.
इससे पहले संयुक्त राष्ट्र के महासचिव बान की मून ने कहा था कि जलवायु परिवर्तन पर आईपीसीसी की रिपोर्ट में दुनिया भर में बढ़ रहे तापमान की समस्या के समाधान के लिए ठोस उपाय सुझाए गए हैं लेकिन उन पर सख़्ती से अमल किए जाने की ज़रूरत होगी.
उन्होंने कहा था कि बाली में होने वाले जलवायु परिवर्तन सम्मेलन में इस बारे में कोई ठोस नीति बनाए जाने की ज़रूरत है.
आईपीसीसी की रिपोर्ट में कहा गया है कि जलवायु परिवर्तन बहुत ख़तरनाक चुनौती बन चुकी है और अगर इससे नहीं निपटा गया तो इसके ऐसे ख़तरनाक प्रभाव हो सकते हैं जिनसे उबरना असंभव हो सकता है.
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