Tuesday, February 5, 2008

अमरीकी राष्ट्रपति चुनाव: 24 राज्यों में मतदान

अमरीका के राष्ट्रपति पद की उम्मीदवारी की दौड़ औपचारिक तौर पर लगभग एक महीने पहले शुरू हुई आयोवा से और मंगलवार को चौबीस राज्यों में डेमोक्रेट्स और रिपब्लिकन अपने उम्मीदवारों को चुनने के लिए वोट डाल रहे हैं।

अमरीका में कोई इसे 'सुपर ट्यूसडे' कह रहा है तो कोई 'सुपर-डुपर ट्यूसडे'।

रिपब्लिकन पार्टी की ओर से जॉन मैक्केन सबसे ज़्यादा दमदार नज़र आ रहे हैं वहीं डमोक्रेट्स की ओर से हिलेरी क्लिंटन और बराक ओबामा के बीच कांटे की टक्कर है।

वैसे तो ये माना जाता है कि इतने बड़े इस दंगल में जो जितने ज़्यादा हाथ मिला सके, जितने ज़्यादा दूसरे के बच्चों को चूम सके और जितना ज़्यादा पैसा खर्च कर सके, जीत उसी की होगी।

इस प्रक्रिया के पूरे होने के बाद दोनों पार्टियों की ओर से राष्ट्रपति पद के उम्मीदवारों का निर्णय होगा और फिर शुरु होगा राष्ट्रपति पद का असली चुनाव।

यानी बड़ा सीधा सपाट सा मामला दिखता है लेकिन है बहुत ज़्यादा पेचीदा।

पेचीदगी

हर राज्य को उसकी जनसंख्या के आधार पर रिपब्लिकन और डेमोक्रेट्स पार्टियों ने प्रतिनिधि या डेलीगेट्स दिए हुए हैं और जिसे जितने प्रतिशत वोट मिले उतने प्रतिशत डेलीगेट उनके खाते में आए।

यानी अगर किसी राज्य में दस डेलिगेट हैं और बराक ओबामा को साठ प्रतिशत वोट मिले तो उन्हें छह डेलिगेट मिलेंगे और हिलेरी क्लिंटन को चार।

ये तो डेमोक्रेट्स का गणित है, और कुछ राज्यों में रिपब्लिकन का भी यही फ़ार्मूला है।

लेकिन बाक़ी राज्यों में रिपब्लिकन 'विनर टेक्स ऑल' यानी का फॉर्मूला मानते हैं यानी 'जो जीता सारे डेलिगेट्स उसी के'।

इसके अलावा सुपर डेलिगेट्स भी होते हैं यानी पार्टी के बड़े-बड़े अधिकारी जिन्हें वोट डालने का अधिकार होता है और इसलिए उनका दिल जीतने के लिए सभी उम्मीदवार इन दिनों उनके सामने बिछे रहते हैं।

और जब सभी राज्यों के चुनाव हो जाएंगे तो अगस्त और सितंबर में एक नेशनल कंवेंशन में ये डेलिगेट्स उम्मीदवार का फ़ैसला औपचारिक तौर पर करेंगे।

इस पूरी कवायद की ख़ास बात ये भी है कि आप पचास राज्यों में बहुमत हासिल कर भी लें लेकिन फिर भी आप हार सकते हैं।

कारण ये कि दूसरे के पास डेलिगेट्स ज़्यादा हो सकते हैं क्योंकि उसने कैलिफ़ोर्निया जैसे बड़े राज्य में जीत हासिल कर ली हो।

डेमोक्रेट्स में जो जीतेगा उसे 2025 डेलिगेट्स हासिल करने होंगे, और रिपब्लिकन उम्मीदवार को 1191।

न्यूयॉर्क विश्वविद्दालय में राजनीति शास्त्र के प्रोफ़सर प्रवीण चौधरी का कहना है कि ये मामला इतना पेचीदा है और इतने लंबे समय तक चलता है कि उम्मीदवार उसीमें फंसकर रह जाते हैं, कोई नई बात नहीं निकलती।
वैसे तो सुपर ट्यूसडे के बारे में माना यही जाता रहा है कि जिसने यहाँ जीत हासिल कर ली, उम्मीदवारी उसकी हुई लेकिन इस बार मुक़ाबला ऐसा है कि हो सकता है फ़ैसला अगस्त में ही जाकर हो।

टक्कर

डेमोक्रेट्स की ओर से आठ उम्मीदवार थे इस दौड़ में और सुपर ट्यूसडे तक केवल दो रह गए हैं, हिलैरी क्लिंटन और बराक ओबामा।
मैक्केन
रिपब्लिकन पार्टी की ओर से मैक्केन दौड़ में आगे दिख रहे हैं

टक्कर ऐसी है कि एक-एक डेलिगेट के लिए देश के एक कोने से दूसरे का चक्कर लगाए जा रहे हैं।

जहाँ हिलेरी अपने अनुभव को हथियार बना रही हैं, वहीं ओबामा देश को एकजुट करने की बात कर रहे हैं, बदलाव की बात कर रहे हैं।

रिपब्लिकन कैंप में अभी भी चार उम्मीदवार टिके हुए हैं लेकिन असली टक्कर जॉन मैक्केन और मिट रॉमनी के बीच है।

कुछ महीने पहले माना जा रहा था कि मैक्केन शायद ही कुछ कर पाएँ लेकिन अब ''मैक इज़ बैक'' का नारा पूरी तेज़ी पर है और उन्हें रोकने के लिए मिट रॉमनी रिपब्लिकन वोटरों को ये कहकर लुभा रहे हैं कि सही मायनों में रिपब्लिकन तो वही हैं।

डेमोक्रेट्स के लिए ये दौड़ एक मील का पत्थर साबित हो चुका है क्योंकि हिलैरी जीतें या ओबामा---एक महिला, दूसरा अफ़्रीकन-अमेरिकन यानी काला---अमरीका में आज तक ऐसा नहीं हुआ।

और दोनों में से अगर कोई व्हाइट हाउस की गद्दी पर बैठ गया तो अमरीका में एक नए इतिहास की शुरूआत होगी।

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