ईरान के राष्ट्रपति महमूद अहमदीनेजाद ने घोषणा की है कि भारत-पाकिस्तान-ईरान गैस पाइप लाइन के बारे में आगामी 45 दिनों में सहमति बना ली जाएगी।
भारतीय प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह से बातचीत के बाद मंगलवार की रात आयोजित पत्रकारवार्ता में राष्ट्रपति अहमदीनेजाद ने कहा कि तीनों देशों के नेताओं की बातचीत हुई है और सभी मुद्दे 45 दिनों में सुलझा लिए जाएंगे।
इस पाइप लाइन को चीन तक बढ़ाने के बारे में उन्होंने कहा,'' हमें एक प्रस्ताव मिला है। हम इसकी समीक्षा करेंगे और इस प्रस्ताव के सभी पक्षों का आकलन करेंगे।''
तीनों देशों के नेताओं की बातचीत हुई है और सभी मुद्दे 45 दिनों में सुलझा लिए जाएंगे।
महमूद अहमदीनेजाद, ईरान के राष्ट्रपति
उन्होंने भारत के साथ ईरान के संबंधों को 'गहरे और ऐतिहासिक' बताया।
इसके पहले भारत ने कहा था कि इस पाइप लाइन के बारे में अभी काफ़ी काम किया जाना बाकी है।
भारत के विदेश सचिव शिवशंकर मेनन ने पत्रकारों से बातचीत में कहा,'' इस परियोजना पर काफ़ी काम बाकी है, साथ ही हमें ये सुनिश्चित करना है कि ये व्यापारिक दृष्टि से लाभप्रद हो।''
भारत आगमन से पहले सोमवार को अहमदीनेजाद पाकिस्तान गए थे। वहाँ से वो श्रीलंका गए और मंगलवार की शाम दिल्ली पहुंचे।
अमरीका का विरोध
दोनों देशों के बीच लंबित पड़ी इस परियोजना का अमरीका लंबे समय से विरोध करता आया है पर दोनों देश इसे लेकर आशान्वित रहे हैं।
अहमदीनेजाद और मनमोहन सिंह
भारत ने कहा था कि इस पाइप लाइन के बारे में अभी काफ़ी काम किया जाना बाकी है
इसी सिलसिले में पिछले सप्ताह बुधवार को भारतीय पेट्रोलियम मंत्री मुरली देवड़ा पाकिस्तान गए और वहाँ ईरान-पाकिस्तान-भारत पाइपलाइन परियोजना पर बातचीत की थी।
ग़ौरतलब है कि भारत पेट्रोलियम पदार्थों का एशिया में तीसरा बड़ा उपभोक्ता है और वह ईरान से गैस ख़रीदने की परियोजना पर पिछले एक दशक से बातचीत कर रहा है।
प्राकृतिक गैसों के भंडार के मामले में दुनिया के दूसरे सबसे संपन्न देश ईरान ने वर्ष 1995 में ही भारत को गैस बेचने पर सहमति जताई थी।
तीनों देशों के संयुक्त कार्यदल की अब तक कई बैठकें हो चुकी हैं लेकिन कोई अंतिम फ़ैसला नहीं हुआ है। ईरान की योजना है कि 2011 तक पाकिस्तान को गैस की आपूर्ति शुरू कर दी जाए।
पाइपलाइन पर 1995 में बनी सहमति के बाद से गैस की क़ीमतें कई गुना बढ़ चुकी हैं और इसकी क़ीमत पर पेंच फंसा हुआ है।
इस तरह की ख़बरें आती रही हैं कि अमरीकी दबाव के कारण ईरान के साथ गैस परियोजना में देरी हो रही है। हालांकि भारत इससे इनकार करता आया है।
ऐसे ख़बरें भी आईं थीं कि इस परियोजना से भारत के बाहर निकलने पर ईरान उसकी जगह पर चीन को शामिल कर सकता है। इसके बाद से भारत और सक्रिय हो गया है।
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