राजस्थान में आंदोलन के दौरान गिरफ़्तार हुईं गूजर महिलाओं के मामले की सुनवाई आज हो रही है। इसी पर आगे की बातचीत निर्भर है।
गूजर नेताओं ने माँग रखी है कि सबसे पहले अनुसूचित जनजाति में शामिल किए जाने को लेकर आंदोलन के दौरान जिन महिलाओं को गिरफ़्तार किया गया था उन्हें रिहा किया जाए, तभी किसी तरह की बातचीत हो सकती है।
इस माँग के बाद राज्य सरकार और गूजर प्रतिनिधियों के बीच शुरु हुई बातचीत फिर रूक गई।
इन 25 महिलाओं की ज़मानत याचिका बुधवार को एक स्थानीय अदालत ने ठुकरा दी थी।
अब गुरुवार को दौसा की ज़िला अदालत में इनके मामलों की सुनवाई होगी।
माना जा रहा है कि अगर अदालत से इन महिलाओं को ज़मानत मिल जाती है तो बातचीत फिर शुरु हो जाएगी।
इन 25 महिलाओं को छह जून को दौसा ज़िले में बांदीकुई से उस वक्त गिरफ़्तार किया गया जब उन्होंने रेल मार्ग रोक दिया था।
गूजर नेताओं ने राज्य से इन महिलाओं के ख़िलाफ़ मामला वापस लेने की माँग की है लेकिन सरकारी पक्ष का कहना है कि एक बार अदालत में जाने के बाद मुक़दमा वापस लेना आसान नहीं होता है और इस प्रक्रिया में समय लगता है।
इन महिलाओं पर रेलवे एक्ट के अलावा शांति भंग करने और हिंसा फैलाने से संबंधित मामले दर्ज हैं।
आंदोलनकारियों का मानना है कि उनकी रिहाई के बाद ही वार्ता का माहौल बनेगा।
गूजरों ने अनुसूचित जनजाति का दर्जा दिए जाने की माँग को लेकर ये आंदोलन शुरु किया था ताकि वे आरक्षण का फ़ायदा उठा पाएँ। इस आंदोलन के दौरान झड़पों और पुलिस फ़ायरिंग में 41 लोग मारे गए थे।
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1 comment:
यह कैसा प्रजातंत्र है जहाँ भीड़ हिंसा कर सकती है, राष्ट्रीय संपत्ति को नष्ट कर सकती है, और फ़िर यह मांग कर सकती है कि अपराधियों को रिहा करो?
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