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नई दिल्ली. सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि देश को अगर तरक्की करनी है तो शिक्षा क्षेत्र में परीक्षाओं में नकल को सख्ती से रोकना होगा। शीर्ष अदालत ने बुधवार को परीक्षाओं में विद्यार्थियों द्वारा गलत तरीके अपनाने को बर्दाश्त के बाहर करार देते हुए संबंधित अधिकारियों से इससे कड़ाई से निपटने को कहा। ठीक से पढ़ाई नहीं करने वाले विद्यार्थियों द्वारा परीक्षाओं में नकल के लिए परची के इस्तेमाल के संबंध में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि परीक्षा से संबंधित विषय की परची मिलना ही अनियमितता में आता है। जस्टिस अल्तमस कबीर और मार्कंडेय काटजू ने कहा कि यह अप्रासंगिक है कि परची का इस्तेमाल हुआ या नहीं।
क्या है मामला:
संस्थान ने तीसरे साल के एक छात्र वैभव सिंह चौहान के पास 2004-05 की परीक्षा में परची पाए जाने पर उसे एक साल के लिए अयोग्य करार दिया था और उसके बाद 2006-07 में फिर से तीसरे साल में प्रवेश दिया था। इसके खिलाफ चौहान ने हाई कोर्ट की शरण ली। हाई कोर्ट ने छात्र की सजा को रद्द कर दिया।
किस याचिका पर दिया आदेशनकल के मामले में डॉ अंबेडकर इंस्टीट्यूट ऑफ होटल मैनेजमेंट, न्यूट्रीशन एंड केटरिंग टेक्नालाजी ने नकल मामले में उसकी कार्रवाई को दिल्ली हाई कोर्ट द्वारा रद्द करने पर याचिका पेश की।
क्या कहा था हाई कोर्ट न्यायाधीश ने अपराध के लिए सजा ज्यादा है, छात्र ने अपराध कबूल कर माफी मांग ली है। यह दलील भी मानी कि चौहान के पास मिली परची के इस्तेमाल में आने का कोई सबूत नहीं है। हाई कोर्ट जज ने अपने विद्यार्थी जीवन को याद करते हुए कहा कि परीक्षाओं के ऐन पहले तक इस तरह की परची बना कर पढ़ना आम बात है।
हाई कोर्ट के फैसले को नकारा सुप्रीम कोर्ट ने:
-परीक्षा के दौरान, परीक्षा हॉल में चौहान के पास परची मिली-छात्र, जज की सहानुभूति का पात्र नहीं है-हाई कोर्ट जज के अपने विद्यार्थी जीवन को याद करने पर आपत्ति लेते हुए कहा कि न्यायाधीश से व्यक्तिगत राय परे रखने और फैसलों के बीच में नहीं लाने की अपेक्षा की जाती है।-देश को तरक्की करनी है तो हमें ऊंचे मानक स्थापित करने होंगे और यह तभी संभव है जब परीक्षाओं में गड़बड़ी रोकने के लिए कठोर कदम उठाए जाएं।
English Translation
NEW DELHI: Concerned by falling academic standards, the Supreme Court has suggested a 'zero tolerance' approach towards candidates who are caughtadopting unfair means during examinations and said they deserved no leniency. The usual apology that follows from a candidate caught red-handed with a chit or other material to gain unfair advantage will not do, said a Bench comprising Justices Altamas Kabir and Markandey Katju. Acceptance of apology to pardon him of the charge of unfair means would only amount to "misplaced sympathy", the court said, adding, "We are of the firm opinion that in academic matters, there should be strict discipline and malpractices should be severely punished."
The Bench added, "If our country is to progress, we must maintain high educational standards, and this is only possible if malpractices in examinations are curbed with an iron hand. "It disapproved of the lenient view taken by a single judge Bench of Delhi High Court, which had quashed an institute's decision to detain the student for a year. The HC had felt that the student's apology was enough.
The lenient view of the HC was also based on the student's plea that he had only carried the chit with him and had not referred to it. The single judge of the HC had said, "If we care to think back to our student days, one would invariably recollect preparation of such kind of slips for refreshing the mind immediately before an examination, with no further intent to use it as an unfair or illegitimate means."
Refusing to approve of such personal experience of a judge instrumental in taking a lenient view of the crime, Justice Katju, writing the judgment for the Bench, said what was done by the judge in his student days was "surely irrelevant" for deciding the case or even passing an interim order. Once a slip was found on a candidate, he was guilty of adopting unfair means in examination irrespective of whether he made use of it or not, he said.
The Bench said, "Once it is found that the chit/piece of paper contains material pertaining to the exam in question, it amounts to malpractice, whether the same was used by the examinee or not... Sympathy for students using unfair means is wholly out of place."
नई दिल्ली. सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि देश को अगर तरक्की करनी है तो शिक्षा क्षेत्र में परीक्षाओं में नकल को सख्ती से रोकना होगा। शीर्ष अदालत ने बुधवार को परीक्षाओं में विद्यार्थियों द्वारा गलत तरीके अपनाने को बर्दाश्त के बाहर करार देते हुए संबंधित अधिकारियों से इससे कड़ाई से निपटने को कहा। ठीक से पढ़ाई नहीं करने वाले विद्यार्थियों द्वारा परीक्षाओं में नकल के लिए परची के इस्तेमाल के संबंध में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि परीक्षा से संबंधित विषय की परची मिलना ही अनियमितता में आता है। जस्टिस अल्तमस कबीर और मार्कंडेय काटजू ने कहा कि यह अप्रासंगिक है कि परची का इस्तेमाल हुआ या नहीं।
क्या है मामला:
संस्थान ने तीसरे साल के एक छात्र वैभव सिंह चौहान के पास 2004-05 की परीक्षा में परची पाए जाने पर उसे एक साल के लिए अयोग्य करार दिया था और उसके बाद 2006-07 में फिर से तीसरे साल में प्रवेश दिया था। इसके खिलाफ चौहान ने हाई कोर्ट की शरण ली। हाई कोर्ट ने छात्र की सजा को रद्द कर दिया।
किस याचिका पर दिया आदेशनकल के मामले में डॉ अंबेडकर इंस्टीट्यूट ऑफ होटल मैनेजमेंट, न्यूट्रीशन एंड केटरिंग टेक्नालाजी ने नकल मामले में उसकी कार्रवाई को दिल्ली हाई कोर्ट द्वारा रद्द करने पर याचिका पेश की।
क्या कहा था हाई कोर्ट न्यायाधीश ने अपराध के लिए सजा ज्यादा है, छात्र ने अपराध कबूल कर माफी मांग ली है। यह दलील भी मानी कि चौहान के पास मिली परची के इस्तेमाल में आने का कोई सबूत नहीं है। हाई कोर्ट जज ने अपने विद्यार्थी जीवन को याद करते हुए कहा कि परीक्षाओं के ऐन पहले तक इस तरह की परची बना कर पढ़ना आम बात है।
हाई कोर्ट के फैसले को नकारा सुप्रीम कोर्ट ने:
-परीक्षा के दौरान, परीक्षा हॉल में चौहान के पास परची मिली-छात्र, जज की सहानुभूति का पात्र नहीं है-हाई कोर्ट जज के अपने विद्यार्थी जीवन को याद करने पर आपत्ति लेते हुए कहा कि न्यायाधीश से व्यक्तिगत राय परे रखने और फैसलों के बीच में नहीं लाने की अपेक्षा की जाती है।-देश को तरक्की करनी है तो हमें ऊंचे मानक स्थापित करने होंगे और यह तभी संभव है जब परीक्षाओं में गड़बड़ी रोकने के लिए कठोर कदम उठाए जाएं।
English Translation
NEW DELHI: Concerned by falling academic standards, the Supreme Court has suggested a 'zero tolerance' approach towards candidates who are caughtadopting unfair means during examinations and said they deserved no leniency. The usual apology that follows from a candidate caught red-handed with a chit or other material to gain unfair advantage will not do, said a Bench comprising Justices Altamas Kabir and Markandey Katju. Acceptance of apology to pardon him of the charge of unfair means would only amount to "misplaced sympathy", the court said, adding, "We are of the firm opinion that in academic matters, there should be strict discipline and malpractices should be severely punished."
The Bench added, "If our country is to progress, we must maintain high educational standards, and this is only possible if malpractices in examinations are curbed with an iron hand. "It disapproved of the lenient view taken by a single judge Bench of Delhi High Court, which had quashed an institute's decision to detain the student for a year. The HC had felt that the student's apology was enough.
The lenient view of the HC was also based on the student's plea that he had only carried the chit with him and had not referred to it. The single judge of the HC had said, "If we care to think back to our student days, one would invariably recollect preparation of such kind of slips for refreshing the mind immediately before an examination, with no further intent to use it as an unfair or illegitimate means."
Refusing to approve of such personal experience of a judge instrumental in taking a lenient view of the crime, Justice Katju, writing the judgment for the Bench, said what was done by the judge in his student days was "surely irrelevant" for deciding the case or even passing an interim order. Once a slip was found on a candidate, he was guilty of adopting unfair means in examination irrespective of whether he made use of it or not, he said.
The Bench said, "Once it is found that the chit/piece of paper contains material pertaining to the exam in question, it amounts to malpractice, whether the same was used by the examinee or not... Sympathy for students using unfair means is wholly out of place."
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